एक जंगल में झील के किनारे छोटी सी सुन्दर चट्टान सबका मन मोहती थी।
उड़ती-उड़ती एक तितली उस ओर चली आई। इधर-उधर देख ही रही थी कि सामने से एक छोटी मेंढकी आती दिखी। परिचय हुआ,थोड़ी बातचीत, और फिर दोस्ताना हो गया।
ऐसी सुन्दर जगह भला और कहाँ,दोनों ने तय किया कि चलो यहीं रहा जाय। एक से भले दो, मन भी लगा रहेगा और रहने का स्थाई ठिकाना भी हो जायेगा।
कुछ दिन बहुत मजे में बीते, सुबह की धूप दोनों को लुभाती,झील की लहरें दोनों के मानस को सहलातीं।
एक दिन सुबह उठते ही मेंढकी ने देखा कि तितली पथरीली चट्टान के आसपास साफ-सफाई में लगी है। पूछने पर बोली- "यहाँ कुछ सुन्दर फूल उगा लिए जाएँ,तो पराग-कणों से खाने-पीने का सतूना भी यहीं हो जाये।"
मेंढकी कुछ न बोली। अगली सुबह जब तितली सोकर उठी तो उसने देखा कि मेंढकी पहले से ही जाग कर काम में लगी है। वह झील से कुछ कीचड़,बदबूदार पानी और प्राणियों के मल से मैली हुई गन्दी मिट्टी वहां ला-लाकर डाल रही थी।
पूछने पर बोली-"अरे मैंने सोचा, गंदगी का छोटा ढेर लगा लूँ तो कीड़े-मच्छर यहीं पनप जाएँ,खाने-पीने का जुगाड़ हो जाये।"
दोनों के बीच पहले कुछ देर का अबोला हुआ, फिर मनमुटाव हो गया।
तितली दिनभर उड़ती फिरती और जो भी मिलता उससे कहती कि इस जगह को गुलज़ार करने में मेरा साथ दो। मेंढकी कहती-"ख़बरदार जो सफाई में किसी ने इसका साथ दिया।"
उड़ती-उड़ती एक तितली उस ओर चली आई। इधर-उधर देख ही रही थी कि सामने से एक छोटी मेंढकी आती दिखी। परिचय हुआ,थोड़ी बातचीत, और फिर दोस्ताना हो गया।
ऐसी सुन्दर जगह भला और कहाँ,दोनों ने तय किया कि चलो यहीं रहा जाय। एक से भले दो, मन भी लगा रहेगा और रहने का स्थाई ठिकाना भी हो जायेगा।
कुछ दिन बहुत मजे में बीते, सुबह की धूप दोनों को लुभाती,झील की लहरें दोनों के मानस को सहलातीं।
एक दिन सुबह उठते ही मेंढकी ने देखा कि तितली पथरीली चट्टान के आसपास साफ-सफाई में लगी है। पूछने पर बोली- "यहाँ कुछ सुन्दर फूल उगा लिए जाएँ,तो पराग-कणों से खाने-पीने का सतूना भी यहीं हो जाये।"
मेंढकी कुछ न बोली। अगली सुबह जब तितली सोकर उठी तो उसने देखा कि मेंढकी पहले से ही जाग कर काम में लगी है। वह झील से कुछ कीचड़,बदबूदार पानी और प्राणियों के मल से मैली हुई गन्दी मिट्टी वहां ला-लाकर डाल रही थी।
पूछने पर बोली-"अरे मैंने सोचा, गंदगी का छोटा ढेर लगा लूँ तो कीड़े-मच्छर यहीं पनप जाएँ,खाने-पीने का जुगाड़ हो जाये।"
दोनों के बीच पहले कुछ देर का अबोला हुआ, फिर मनमुटाव हो गया।
तितली दिनभर उड़ती फिरती और जो भी मिलता उससे कहती कि इस जगह को गुलज़ार करने में मेरा साथ दो। मेंढकी कहती-"ख़बरदार जो सफाई में किसी ने इसका साथ दिया।"
Dhanyawad
ReplyDeleteउपयोगी और प्रेरक।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteAap donon ka aabhaar!
ReplyDelete