जब पब्लिक किसी सिनेमाघर से फ़िल्म देख कर निकलती है तो बड़ा अजीबोगरीब नज़ारा होता है। वही हीरो,वही हीरोइन,वही कहानी,वही गीत-संगीत,वही मारधाड़,वही फोटोग्राफी सबने देखी पर फिर भी भीड़ में अलग-अलग स्वर सुनाई देते हैं।
-"वाह पैसा वसूल, मज़ा आ गया।"
-"बोर है, इसकी पिछली ज्यादा अच्छी थी।"
-"कहानी तो कुछ है ही नहीं।"
-"गाने बढ़िया हैं।"
और यही सब होते हैं आम आदमी।"सलमान की एक्टिंग बढ़िया है, करीना को तो एक्टिंग आती ही नहीं,संगीत बोर है " ऐसे जुमले जबतक "फीडबैक"की तरह रहते हैं ,ठीक हैं। मगर उन्हीं दर्शकों को अगर ये मुगालता हो जाए, कि करीना की जगह हम एक्टिंग करके बताएं,या अन्नू मालिक की जगह संगीत हम देकर दिखाएँ तो बात का क्या हश्र होगा, यह कल्पना भी नहीं की जा सकती।
यही हाल राजनीति में भी होता है, सरकार कैसी है, यह बताना तो आसान है, काम ठीक कर रही है या नहीं, इस पर भी राय दी जा सकती है, पर सरकारों पर प्रतिक्रिया देने वाले खुद सरकार बनाने या चला कर दिखाने में भी माहिर हों ये कोई ज़रूरी नहीं।
-"वाह पैसा वसूल, मज़ा आ गया।"
-"बोर है, इसकी पिछली ज्यादा अच्छी थी।"
-"कहानी तो कुछ है ही नहीं।"
-"गाने बढ़िया हैं।"
और यही सब होते हैं आम आदमी।"सलमान की एक्टिंग बढ़िया है, करीना को तो एक्टिंग आती ही नहीं,संगीत बोर है " ऐसे जुमले जबतक "फीडबैक"की तरह रहते हैं ,ठीक हैं। मगर उन्हीं दर्शकों को अगर ये मुगालता हो जाए, कि करीना की जगह हम एक्टिंग करके बताएं,या अन्नू मालिक की जगह संगीत हम देकर दिखाएँ तो बात का क्या हश्र होगा, यह कल्पना भी नहीं की जा सकती।
यही हाल राजनीति में भी होता है, सरकार कैसी है, यह बताना तो आसान है, काम ठीक कर रही है या नहीं, इस पर भी राय दी जा सकती है, पर सरकारों पर प्रतिक्रिया देने वाले खुद सरकार बनाने या चला कर दिखाने में भी माहिर हों ये कोई ज़रूरी नहीं।
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