कल होली का त्यौहार था. रंगों और उमंगों का त्यौहार !
सुबह से ही बहुत मासूम मौसम था. इस दिन सब बहुत भले-भले से लगते हैं, क्योंकि एक तो रंग खेलने की मुद्रा में पुराने कपड़ों में होते हैं, बिना नहाये-धोये अपने ओरिजनल चेहरे-मोहरे में होते हैं, दूसरे अपने स्टेटस, स्तर,जाति आदि से बेपरवाह होते हैं, और किसी को भी छू देने या छू लिए जाने की निर्दोष मानसिकता में होते हैं.ऐसा ही था, और चारों ओर देख कर ऐसा लग रहा था कि ज़िंदगी यही है, इसमें कहीं किसी दुःख का नामो-निशान नहीं है.पिछले चार महीने की सर्दी ने भी जैसे धूप को चार्ज दे दिया था.
लेकिन दिन चढ़ते-चढ़ते सड़कों पर छोटे-छोटे किशोर और बच्चे दुपहिया वाहनों से तीन-चार सवारियों के बोझ से लहराते, ट्रेफिक नियमों को धता बताते, एक दूसरे से होड़ करते इस तरह अवतरित होने लगे मानो यह कोई शहर नहीं बल्कि घना जंगल हो, जिसमें कोई भी कभी भी घायल हो सकता है, कोई भी कभी भी मर सकता है.जो युवा या परिपक्व थे, उनमें कई नशे की गिरफ्त में थे.
शाम होते-होते टीवी पर हर हस्पताल के आंकड़े आने लगे कि कहाँ-कहाँ कितने भर्ती हैं.कुछ अपनी गलती से और कुछ बेचारे निर्दोष दूसरों की गलती से.
कभी-कभी लगता है कि हमारे त्यौहार भी अर्थ-व्यवस्था में सभी को कुछ न कुछ बांटने के लिए आते हैं. और सभी से कुछ न कुछ छीनने भी.
सुबह से ही बहुत मासूम मौसम था. इस दिन सब बहुत भले-भले से लगते हैं, क्योंकि एक तो रंग खेलने की मुद्रा में पुराने कपड़ों में होते हैं, बिना नहाये-धोये अपने ओरिजनल चेहरे-मोहरे में होते हैं, दूसरे अपने स्टेटस, स्तर,जाति आदि से बेपरवाह होते हैं, और किसी को भी छू देने या छू लिए जाने की निर्दोष मानसिकता में होते हैं.ऐसा ही था, और चारों ओर देख कर ऐसा लग रहा था कि ज़िंदगी यही है, इसमें कहीं किसी दुःख का नामो-निशान नहीं है.पिछले चार महीने की सर्दी ने भी जैसे धूप को चार्ज दे दिया था.
लेकिन दिन चढ़ते-चढ़ते सड़कों पर छोटे-छोटे किशोर और बच्चे दुपहिया वाहनों से तीन-चार सवारियों के बोझ से लहराते, ट्रेफिक नियमों को धता बताते, एक दूसरे से होड़ करते इस तरह अवतरित होने लगे मानो यह कोई शहर नहीं बल्कि घना जंगल हो, जिसमें कोई भी कभी भी घायल हो सकता है, कोई भी कभी भी मर सकता है.जो युवा या परिपक्व थे, उनमें कई नशे की गिरफ्त में थे.
शाम होते-होते टीवी पर हर हस्पताल के आंकड़े आने लगे कि कहाँ-कहाँ कितने भर्ती हैं.कुछ अपनी गलती से और कुछ बेचारे निर्दोष दूसरों की गलती से.
कभी-कभी लगता है कि हमारे त्यौहार भी अर्थ-व्यवस्था में सभी को कुछ न कुछ बांटने के लिए आते हैं. और सभी से कुछ न कुछ छीनने भी.
प्रेम व सौहार्द्य के इस त्योहार को इन लोगों की करतूतों ने बदनाम कर दिया है इसके पीछे की सभी भावनाएं समाप्त हो गयी है
ReplyDeleteJi, yadi iska koi hal soch saken to kripya bataayen. Aabhar!
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