Saturday, January 28, 2012

आपको मालूम हो तो बताएं

पिछले कुछ समय से एक छोटे से सवाल का जवाब नहीं मिल रहा है. यदि आपने हिंदी फिल्मों के अवार्ड फंक्शन देखे हों तो आपके भी मन में यह सवाल आया ज़रूर होगा. और फंक्शन भी कोई न कोई तो ज़रूर देखा होगा, क्योंकि यह अच्छी खासी तादाद में आ रहे हैं. मैं हाल ही में आये स्क्रीन कलर्स अवार्ड की बात कर रहा हूँ. वैसे सवाल केवल इन्हीं पुरस्कारों से सम्बंधित नहीं है, लगभग ऐसे सभी पुरस्कारों में ये आपको दिखेगा. 
आजकल हास्य कलाकार का लिंग-निर्धारण नहीं होता. यह पुरस्कार केवल एक ही व्यक्ति को दिया जाता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष. जबकि बेस्ट हीरो, बेस्ट हीरोइन,बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर मेल या फीमेल आदि पुरस्कार अलग-अलग दिए जाते हैं. इसके पीछे क्या तर्क हो सकता है? 
वैसे सवाल तो और भी हैं, पर फ़िलहाल इसी का उत्तर देदें. सवाल तो यह भी है कि आजकल ज्यादा पुरस्कार उन नायकों या नायिकाओं को ही क्यों मिलते हैं जो अपने मम्मी-डैडी के साथ फंक्शन में आते हैं? ऐसे पुरस्कारों का सिलसिला अभिषेक बच्चन से शुरू हुआ था जो तुषार,रणबीर,सोनाक्षी आदि के साथ अबतक जारी है.इस सवाल के संभावित उत्तर कई हैं- [क]इस से एक सितारे को इनाम देकर समारोह में तीन सितारे बुलाये जा सकते हैं [ख] मम्मी-डैडी भी फ़िल्मी कलाकार होने से चेहरे से आसानी से यह पता नहीं चलने देते कि पुरस्कार प्रायोजित था [ग]पुरस्कार बांटने के लिए भी कई दावेदार मिल जाते हैं[घ] लाइफ टाइम अचीवमेंट के लिए जिन्हें चुना जाता है उन्हें पकड़ कर लाने वाले भी उनके घर वाले ही मिल जाते हैं,आयोजकों को अलग से जुटाने नहीं पड़ते.     

1 comment:

  1. धन्धा तो धन्धा है, माल बेचना है, सत्कार हो, पुरस्कार या फिर अचार। मुनाफ़े का सूत्र भी वही है, लागत कम, लाभ अधिक।

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