एक कवि ने तन्मय होकर पूरे मनोयोग से एक कविता लिखी। कवि की अंतरात्मा से निरंतर ये आवाज़ आ रही थी कि कविता बेहद ही शानदार है, और ये अवश्य ही कवि को आधुनिक साहित्य में अहम मुकाम दिला कर कालजयी बनाएगी। लिहाजा कवि ने उसे एक नामी आलोचक के पास टिप्पणी के लिए भेज दिया, जो संयोग से एक प्रखर संपादक भी थे।
कुछ दिन बाद संपादक की टिप्पणी कवि को मिली-"बेहद मार्मिक, सार्थक,सटीक हृदयस्पर्शी रचना, मैं चाहता हूँ कि इसे जन-जन पढ़े,इस पर शोध हों, टीका-व्याख्या-मीमांसा हो,ताकि दुनिया को पता तो चले कि आखिर ये है क्या?"
कवि महोदय "उल्लास से स्तब्ध"हो गए, उनपर "हर्षातिरेक से हताशा" का दौरा पड़ गया।
वे तत्काल अपने एक गणितज्ञ-मित्र के पास दौड़े। उन्हें पूरा यकीन था कि उनका मित्र उन्हें मिले संपादक के पत्र में "तारीफ का प्रतिशत" निकाल कर उन्हें बता सकेगा।
कुछ दिन बाद संपादक की टिप्पणी कवि को मिली-"बेहद मार्मिक, सार्थक,सटीक हृदयस्पर्शी रचना, मैं चाहता हूँ कि इसे जन-जन पढ़े,इस पर शोध हों, टीका-व्याख्या-मीमांसा हो,ताकि दुनिया को पता तो चले कि आखिर ये है क्या?"
कवि महोदय "उल्लास से स्तब्ध"हो गए, उनपर "हर्षातिरेक से हताशा" का दौरा पड़ गया।
वे तत्काल अपने एक गणितज्ञ-मित्र के पास दौड़े। उन्हें पूरा यकीन था कि उनका मित्र उन्हें मिले संपादक के पत्र में "तारीफ का प्रतिशत" निकाल कर उन्हें बता सकेगा।