भारत में वर्षों तक कभी राजाओं -रजवाड़ों का शासन था। राजा न रहे तो उसकी संतान का तत्काल राज्याभिषेक हो जाता था। जब तक राजा जीवित रहे, ताज उस के सिर पर ही रहता था, चाहे वह वृद्ध, अशक्त या रुग्ण ही हो.उसके मरते ही सत्ता उसके पुत्र के पास चली जाती थी चाहे वह अनुभवहीन, छोटा या नासमझ ही क्यों न हो.राजा का ही यह दायित्व था कि वह जाने से पहले राज्य को शासक दे, चाहे इसके लिए कितने भी विवाह करने पड़ें, किसी को गोद लेना पड़े या किसी शत्रु के हाथों पराजय झेलनी पड़े.
यह परम्परा भारत से अँगरेज़ शासकों ने छुड़ाई,जब उन्होंने छल,बल,छद्म या लालच से उन्हें सत्ता मुक्त किया.
जिस तरह शराब छोड़ने पर भी शराबी के मुंह से मदिरा की गंध आसानी से नहीं जाती, उसी तरह सत्ता छूटने पर उसका ख़ुमार उतरना भी आसान नहीं होता.
राजाओं से छिने राजसी-वैभव की यह लत इंदिराजी ने छुड़वाई,जब उन्होंने पूर्व-राजाओं को सरकार की ओर से दिए जाने वाले गुज़ारे-भत्ते [ प्रिवीपर्स] को बंद किया.
इंदिराजी ने इसी तरह के और भी कई बड़े-बड़े काम किये.
लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि सब बड़े-बड़े कामों की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की ही मान ली गयी.ठीक तो है, जिसने पहले किया, वही अब करे.
भारत इस अर्थ में अत्यंत भाग्यशाली है कि यहाँ जब भी कोई काम फैलता है तभी कोई न कोई उसे करने वाला भी देश को मिल ही जाता है.बीसवीं सदी की ही तरह इक्कीसवीं सदी में भी !
यह परम्परा भारत से अँगरेज़ शासकों ने छुड़ाई,जब उन्होंने छल,बल,छद्म या लालच से उन्हें सत्ता मुक्त किया.
जिस तरह शराब छोड़ने पर भी शराबी के मुंह से मदिरा की गंध आसानी से नहीं जाती, उसी तरह सत्ता छूटने पर उसका ख़ुमार उतरना भी आसान नहीं होता.
राजाओं से छिने राजसी-वैभव की यह लत इंदिराजी ने छुड़वाई,जब उन्होंने पूर्व-राजाओं को सरकार की ओर से दिए जाने वाले गुज़ारे-भत्ते [ प्रिवीपर्स] को बंद किया.
इंदिराजी ने इसी तरह के और भी कई बड़े-बड़े काम किये.
लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि सब बड़े-बड़े कामों की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की ही मान ली गयी.ठीक तो है, जिसने पहले किया, वही अब करे.
भारत इस अर्थ में अत्यंत भाग्यशाली है कि यहाँ जब भी कोई काम फैलता है तभी कोई न कोई उसे करने वाला भी देश को मिल ही जाता है.बीसवीं सदी की ही तरह इक्कीसवीं सदी में भी !
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