Tuesday, December 15, 2015

लोकतंत्र में सत्ता वह है जिसे हम चुनते हैं ...तो हमने कुछ नहीं खोया

एक पखवाड़े बाद जब ये साल हमारी निगाहों से ओझल हो जायेगा तो शायद हर बीतने वाले साल की तरह कुछ दिन तक हम लोग इसे भी याद करेंगे.इससे वाबस्ता कई बड़ी-छोटी बातें और ख़बरें हमारे सामने लाई जायेंगी.लेकिन कुछ बातें ऐसी भी हैं, जिनके बाबत प्रायः हम नहीं सोचेंगे.आइये,आज उन्हीं के बारे में सोचें.
देश [और दुनिया ने भी] ने तेज़ी से इस साल जिन बातों को खोया है,उनमें से कुछ ये बताई जा रही हैं-
१. नेताओं ने मान-सम्मान
२. अभिनेताओं ने लोकप्रियता
३. खिलाड़ियों ने आत्मविश्वास
४. अमीरों ने सहानुभूति
५. गरीबों ने जीने के स्रोत
६. कलाकारों ने दर्शक
७. साहित्यकारों ने विश्वसनीयता
८. प्रशासकों ने पकड़
९. बच्चों ने बेहतर भविष्य के अवसर
१०. लोगों ने सहनशीलता
किन्तु संतोष की बात ये भी है कि अब देश की दो की जगह चार ऑंखें हो गयी हैं-दो सत्ता की, दो विपक्ष की. और ये सब बातें हमने केवल विपक्ष की नज़रों में खोई हैं, सत्ता की नज़र में नहीं।
      

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