जब आपको कोई लतीफ़ा या चुटकुला सुनाया जाता है तो आप हँस कर उसका आनंद उठा लेते हैं। शायद ये कोई नहीं सोचता कि ये चुटकुला कैसे और कब बना होगा? किसने बनाया होगा।
लेकिन हम लोग खुशकिस्मत हैं कि लतीफों की फैक्ट्रियां हमारे आसपास ही लगी हैं और हम नित नए उत्पाद बनते देखते हैं।
कुछ साल पहले एक सरकार ने अपने दफ्तरों में बढ़ती फाइलों और कागज़ों के अम्बार से तंग आकर ये फ़रमान निकाला कि गैर-ज़रूरी कागज़ात को रद्दी में निपटा दिया जाये। लेकिन सरकार खासी मुस्तैद भी थी, ये भी सोचा कि रद्दी में बेचने के बाद में यदि किसी कागज़ की ज़रूरत पड़ी तो क्या होगा? तत्काल दूसरा आदेश भी निकाला कि रद्दी में बेचने से पहले सभी कागज़ों की एक-एक फोटोप्रति ज़रूर फाइलों में रख ली जाये.
दिल्ली राज्य की सरकार तो एक कदम और आगे बढ़ गयी.प्रदूषण कम करने के लिए निश्चय किया है कि सड़कों पर एक दिन ०,२,४,६,८ अंतिम नंबर वाली गाड़िया चलें और दूसरे दिन १,३,५,७,९ अंतिम नंबर वाली.
सच में दिल्ली की सड़कों पर बेतहाशा बढ़ती गाड़ियों की संख्या ने प्रदूषण तो बहुत बढ़ा दिया है.
तो अब दिल्ली में एक गाड़ी के मालिक दो-दो गाड़ियां खरीदने के लिए आज़ाद हैं। दिल्ली वाले एक दिन कार में, दूसरे दिन बस में तो जाने से रहे.आखिर दिल्ली वाले हैं !
फिर और भी रौनकें बढ़ेंगी.नंबर चैक होंगे तो जगह-जगह ट्रैफ़िक-जाम, ट्रैफ़िक पुलिस डाल-डाल तो वाशिंदे पात-पात.फिर चाट, सलाद,गुटके, चाय-पानी की रेहड़ियां.दिल्ली में हज़ारों गाड़ियों से पटी सड़कों पर लेन नंबर २, ४, ६ तो किसी को दिख नहीं पाती, एक अदद सिपहिया को दो दूनी चार कौन से चश्मे से दिखेगा? सिपाही भी वो, जिनके लिए दिल्ली सरकार दुखी है कि हमारी नहीं सुनते.
एक फायदा ज़रूर होगा- चालान काटने वाले सिपाही विधायकों की अंधाधुंध बढ़ी तनखा तो वसूल देंगे.
तो आदरणीय दिल्लीवासियो,जो सरकार आपको बिजली-पानी मुफ्त देगी उसकी तनखा तो आपको देनी ही पड़ेगी न?
जब तीन दिन आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट से चल लेंगे तो शायद पब्लिक ट्रांसपोर्ट को भी ये पश्चाताप होने लगे कि हाय,जब हम इन्हें तीन दिन ले जा पाये तो छहों दिन क्यों न ले गए?
लेकिन हम लोग खुशकिस्मत हैं कि लतीफों की फैक्ट्रियां हमारे आसपास ही लगी हैं और हम नित नए उत्पाद बनते देखते हैं।
कुछ साल पहले एक सरकार ने अपने दफ्तरों में बढ़ती फाइलों और कागज़ों के अम्बार से तंग आकर ये फ़रमान निकाला कि गैर-ज़रूरी कागज़ात को रद्दी में निपटा दिया जाये। लेकिन सरकार खासी मुस्तैद भी थी, ये भी सोचा कि रद्दी में बेचने के बाद में यदि किसी कागज़ की ज़रूरत पड़ी तो क्या होगा? तत्काल दूसरा आदेश भी निकाला कि रद्दी में बेचने से पहले सभी कागज़ों की एक-एक फोटोप्रति ज़रूर फाइलों में रख ली जाये.
दिल्ली राज्य की सरकार तो एक कदम और आगे बढ़ गयी.प्रदूषण कम करने के लिए निश्चय किया है कि सड़कों पर एक दिन ०,२,४,६,८ अंतिम नंबर वाली गाड़िया चलें और दूसरे दिन १,३,५,७,९ अंतिम नंबर वाली.
सच में दिल्ली की सड़कों पर बेतहाशा बढ़ती गाड़ियों की संख्या ने प्रदूषण तो बहुत बढ़ा दिया है.
तो अब दिल्ली में एक गाड़ी के मालिक दो-दो गाड़ियां खरीदने के लिए आज़ाद हैं। दिल्ली वाले एक दिन कार में, दूसरे दिन बस में तो जाने से रहे.आखिर दिल्ली वाले हैं !
फिर और भी रौनकें बढ़ेंगी.नंबर चैक होंगे तो जगह-जगह ट्रैफ़िक-जाम, ट्रैफ़िक पुलिस डाल-डाल तो वाशिंदे पात-पात.फिर चाट, सलाद,गुटके, चाय-पानी की रेहड़ियां.दिल्ली में हज़ारों गाड़ियों से पटी सड़कों पर लेन नंबर २, ४, ६ तो किसी को दिख नहीं पाती, एक अदद सिपहिया को दो दूनी चार कौन से चश्मे से दिखेगा? सिपाही भी वो, जिनके लिए दिल्ली सरकार दुखी है कि हमारी नहीं सुनते.
एक फायदा ज़रूर होगा- चालान काटने वाले सिपाही विधायकों की अंधाधुंध बढ़ी तनखा तो वसूल देंगे.
तो आदरणीय दिल्लीवासियो,जो सरकार आपको बिजली-पानी मुफ्त देगी उसकी तनखा तो आपको देनी ही पड़ेगी न?
जब तीन दिन आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट से चल लेंगे तो शायद पब्लिक ट्रांसपोर्ट को भी ये पश्चाताप होने लगे कि हाय,जब हम इन्हें तीन दिन ले जा पाये तो छहों दिन क्यों न ले गए?
1) एक दिन जा के दूसरे दिन आना हो तब?
ReplyDelete2) सम संख्या वाले विषम दिन को बीमार पड़े तो?
3) सबसे दुखी वे जिनके घर कारें तो तीन हों पर हों तीनों या तो सं या विषम ...
4) मज़े उन विधायकों के जिन्होंने अभी अपना वेतन 400% बढ़ाया है। अब जनसेवा के लिए उन्हें मजबूरी में एक-एक सरकारी कार और लेनी पड़ेगी
Aapki baat jayaz hai, par Sarkar to vahi karegi na jisse aam ke aam aur guthliyon ke daam!
ReplyDeleteAabhaar !
lol
ReplyDeleteएक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html
,अव्यहारिक निर्णय, निर्णय से पहले कुछ सोचा तो होता , क्या सरकार ने कोई वैकल्पिक साधन जुटाने की योजना बनाई है ?, तुगलकी निर्णय
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