कुछ बच्चे शरारती होते हैं। उनके क्रिया-कलापों को आप तर्क की कसौटी पर नहीं तौल सकते। उनके रक्त में ही शरारत घुली होती है।
वे यदि अपने माता-पिता के साथ भी कहीं मेहमान बन के जाएँ तो ज़्यादा देर संजीदगी से नहीं रह सकते। वे थोड़ी सी औपचारिकताओं के बाद जल्दी ही अनौपचारिक हो जाते हैं। और उतर आते हैं अपनी शरारतों पर।उनके माता-पिता भी उनकी शरारतों के इस तरह अभ्यस्त हो जाते हैं कि फिर उन्हें रोकने-टोकने की जहमत नहीं उठाते। बल्कि मन ही मन उनकी शरारतों को अपरिहार्य मान कर उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन इस प्रवृत्ति से मेज़बान की नाक में दम हो जाता है। मेज़बान की समझ में नहीं आता कि आमंत्रित मेहमानों का लिहाज करके ऊधमी बच्चों को मनमानी करने दें या फिर सब कुछ भुला कर उन पर लगाम कसें। ऐसे में निश्चित ही माँ-बाप को भी पूरी तरह निर्दोष नहीं माना जा सकता। आखिर ऐसे बच्चों पर नियंत्रण रखने की पहली ज़िम्मेदारी तो उन्हीं की है। लेकिन कहीं-कहीं तो माँ-बाप पूरी तरह अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं और अपने बच्चों को उनकी मनचाही शरारत करने देते हैं।हद तो तब होती है जब वे अपने बच्चों की करतूत देख कर भी अनजान बने रहते हैं। यदि मेज़बान दबे-ढके शब्दों में उन्हें इस ओर ध्यान दिलाना भी चाहें तो वे गौर नहीं करते।
वो किस्सा तो आपने सुना ही होगा। मेहमान का एक बच्चा बार-बार मेज़बान के पालतू पिल्ले की पूंछ खींच-खींच कर उसे तंग कर रहा था। मेहमान ने उसके माता-पिता का ध्यान उधर खींचने के लिए कहा-"ये आपका बड़ा बेटा है न जो उस टॉमी को तंग रहा है?" मेहमान ने सहजता से कहा-"जी नहीं, वह तो छोटा है, बड़ा वह है जो आपकी खिड़की का कांच तोड़ने की कोशिश कर रहा है।"
आप कभी ध्यान से देखने की कोशिश कीजिये, ये शरारती बच्चे कहीं भी हो सकते हैं, किसी भी उम्र के हो सकते हैं। किसी भी देश के हो सकते हैं।
हो सकता है कि इनके पिता-समान नेता जब किसी देश के राष्ट्र-प्रमुख के साथ दोस्ती के माहौल में बैठ कर लंच ले रहे हों ये देश की सीमा पर बेवजह भीतर घुसने की शरारत कर रहे हों। इनके नेता जब शांति से बैठकर दोस्ती और भाईचारे की सनद पर दस्तख़त कर रहे हों,उस समय ये सीमा पर तमंचे दिखा कर दूसरे देश के लोगों को डरा-धमका रहे हों।
खैर, ऐसी गीदड़ भभकियों से किसी का कुछ बनता-बिगड़ता तो नहीं है, पर फ़िज़ूल में मेज़बान देश के नेताओं पर कीचड़ उछालने का मौका तो उनके अपने ही देश के वाशिंदों को मिल जाता है। आखिर शरारती बच्चे तो दोनों ही घरों में होते हैं -क्या मेहमान और क्या मेज़बान !
वे यदि अपने माता-पिता के साथ भी कहीं मेहमान बन के जाएँ तो ज़्यादा देर संजीदगी से नहीं रह सकते। वे थोड़ी सी औपचारिकताओं के बाद जल्दी ही अनौपचारिक हो जाते हैं। और उतर आते हैं अपनी शरारतों पर।उनके माता-पिता भी उनकी शरारतों के इस तरह अभ्यस्त हो जाते हैं कि फिर उन्हें रोकने-टोकने की जहमत नहीं उठाते। बल्कि मन ही मन उनकी शरारतों को अपरिहार्य मान कर उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन इस प्रवृत्ति से मेज़बान की नाक में दम हो जाता है। मेज़बान की समझ में नहीं आता कि आमंत्रित मेहमानों का लिहाज करके ऊधमी बच्चों को मनमानी करने दें या फिर सब कुछ भुला कर उन पर लगाम कसें। ऐसे में निश्चित ही माँ-बाप को भी पूरी तरह निर्दोष नहीं माना जा सकता। आखिर ऐसे बच्चों पर नियंत्रण रखने की पहली ज़िम्मेदारी तो उन्हीं की है। लेकिन कहीं-कहीं तो माँ-बाप पूरी तरह अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं और अपने बच्चों को उनकी मनचाही शरारत करने देते हैं।हद तो तब होती है जब वे अपने बच्चों की करतूत देख कर भी अनजान बने रहते हैं। यदि मेज़बान दबे-ढके शब्दों में उन्हें इस ओर ध्यान दिलाना भी चाहें तो वे गौर नहीं करते।
वो किस्सा तो आपने सुना ही होगा। मेहमान का एक बच्चा बार-बार मेज़बान के पालतू पिल्ले की पूंछ खींच-खींच कर उसे तंग कर रहा था। मेहमान ने उसके माता-पिता का ध्यान उधर खींचने के लिए कहा-"ये आपका बड़ा बेटा है न जो उस टॉमी को तंग रहा है?" मेहमान ने सहजता से कहा-"जी नहीं, वह तो छोटा है, बड़ा वह है जो आपकी खिड़की का कांच तोड़ने की कोशिश कर रहा है।"
आप कभी ध्यान से देखने की कोशिश कीजिये, ये शरारती बच्चे कहीं भी हो सकते हैं, किसी भी उम्र के हो सकते हैं। किसी भी देश के हो सकते हैं।
हो सकता है कि इनके पिता-समान नेता जब किसी देश के राष्ट्र-प्रमुख के साथ दोस्ती के माहौल में बैठ कर लंच ले रहे हों ये देश की सीमा पर बेवजह भीतर घुसने की शरारत कर रहे हों। इनके नेता जब शांति से बैठकर दोस्ती और भाईचारे की सनद पर दस्तख़त कर रहे हों,उस समय ये सीमा पर तमंचे दिखा कर दूसरे देश के लोगों को डरा-धमका रहे हों।
खैर, ऐसी गीदड़ भभकियों से किसी का कुछ बनता-बिगड़ता तो नहीं है, पर फ़िज़ूल में मेज़बान देश के नेताओं पर कीचड़ उछालने का मौका तो उनके अपने ही देश के वाशिंदों को मिल जाता है। आखिर शरारती बच्चे तो दोनों ही घरों में होते हैं -क्या मेहमान और क्या मेज़बान !
Aapka aabhaar!
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