देखते-देखते कश्मीर की अतिवृष्टि और बाढ़ बेहद खतरनाक विभीषिका में तब्दील हो गयी। निरीह और निर्दोष लोगों ने अपने घर की छत पर खड़े-खड़े मौत को तेज़ी से अपने करीब आते देखा।
ऐसे में राहत और बचाव में लगे लोग किसी देवदूत की तरह लोगों की जान सहेजने की मुहिम में जुटे रहे। अथाह पानी के ऊपर से उड़ता हुआ कोई हेलीकॉप्टर जब छतों पर सहारे की रस्सी लटकाता,या फिर पानी के ऊपर से गुज़रती कोई नाव छत पर खड़े लोगों से कूद पड़ने का आग्रह करती तो हर एक के मन में यही ख्याल आता कि शरीर के भीतर जो एक "जान" नाम की चिड़िया बैठी है, केवल उसे ही अपने साथ में लेकर भागना है।बाकी सब कुछ भूल जाना है।
आज से छह साल पहले आज के ही दिन ऐसा ही एक नज़ारा हुआ था। लेकिन तब किसी हेलीकॉप्टर की रस्सी या कश्ती के आह्वान की सुविधा नहीं मिली। 'जान'नाम की चिड़िया को साथ ले उड़ने की मोहलत भी वक़्त ने नहीं दी। पुराने दुःख नए दुःखों को कम तो क्या करेंगे, हां, बढ़ा भले ही दें।
खैर, कुदरत का करीना भी यही है, और करिश्मा भी यही !
ऐसे में राहत और बचाव में लगे लोग किसी देवदूत की तरह लोगों की जान सहेजने की मुहिम में जुटे रहे। अथाह पानी के ऊपर से उड़ता हुआ कोई हेलीकॉप्टर जब छतों पर सहारे की रस्सी लटकाता,या फिर पानी के ऊपर से गुज़रती कोई नाव छत पर खड़े लोगों से कूद पड़ने का आग्रह करती तो हर एक के मन में यही ख्याल आता कि शरीर के भीतर जो एक "जान" नाम की चिड़िया बैठी है, केवल उसे ही अपने साथ में लेकर भागना है।बाकी सब कुछ भूल जाना है।
आज से छह साल पहले आज के ही दिन ऐसा ही एक नज़ारा हुआ था। लेकिन तब किसी हेलीकॉप्टर की रस्सी या कश्ती के आह्वान की सुविधा नहीं मिली। 'जान'नाम की चिड़िया को साथ ले उड़ने की मोहलत भी वक़्त ने नहीं दी। पुराने दुःख नए दुःखों को कम तो क्या करेंगे, हां, बढ़ा भले ही दें।
खैर, कुदरत का करीना भी यही है, और करिश्मा भी यही !
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