विकास बहुत आसान है। शरीर को कोई रोग हो जाये,तो उसका इलाज नहीं करने से बीमारी का विकास हो जाता है। लेकिन ये बापू,अर्थात महात्मा गांधी की विकास की अवधारणा नहीं है। उनके विकास का मतलब तो बड़ा गहरा है। वैसा विकास आसान नहीं है। आइये देखें, कैसा विकास चाहते थे बापू?
पहले तो ये जानना ज़रूरी है कि शहरी और ग्रामीण विकास में अंतर क्या है!यदि शहर की खुशहाली बढ़े, रोज़गार बढ़े, सुविधाएँ बढ़ें तो ये शहरी विकास है। और यदि यही सब बातें गांवों में बढ़ें तो ये ग्रामीण विकास है। मतलब ये हुआ कि विकास चाहे शहरों में हो या गांवों में, इस से देश का भला तो होता ही है।
तो फिर बापू ग्रामीण विकास की बात क्यों करते थे? ग्रामीण विकास को देश के लिए ज़रूरी क्यों मानते थे? गांवों के विकास की बात इसलिए होती थी, क्योंकि हमारे देश की अस्सी प्रतिशत जनसँख्या गांवों में रहती है। यदि गांव खुशहाल होंगे तो ज़्यादा आबादी को इस विकास का लाभ मिलेगा। लोग रोजगार और रोटी के लिए गांव छोड़ कर शहर की ओर नहीं भागेंगे।
दूसरे,बापू ये मानते थे कि पूँजी गांवों में पैदा होती है शहरों में पैदा नहीं होती। वहां तो उसका प्रयोग होता है, बंटवारा होता है, उपभोग होता है। उपजाने का काम गांवों का है। हर तरह की उपज वहां होती है। गांवों को विकसित बनाने से उत्पादन का काम और ज़ोर पकड़ेगा।गांव में काम करने वाले खुशहाल होंगे तो वे देश की उन्नति में ज़्यादा योगदान देंगे।
शहर में लोग एक-एक फुट ज़मीन बेच कर हज़ारों रूपये कमा लेते हैं,लेकिन गांव में जिनके पास लम्बी-चौड़ी धरती है उनके तन पर ठीक से कपड़ा भी नहीं होता।उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ पाते। उनकी बीमारी के इलाज के लिए अच्छे डॉक्टर,अच्छे अस्पताल नहीं होते। जबकि शहरों में सुख-सुविधाओं में जीने वालों की रोटी गांवों से आती है। हल गांवों में चलते हैं।
एयर कंडीशंड कमरे में सवेरे नौ बजे उठ कर दोपहर पांच सितारा होटल में लंच के लिए पनीर का ऑर्डर देने वाले ये नहीं जानते कि इस पनीर के लिए दूध किसी फटेहाल किसान ने सर्दी-गर्मी-बरसात में अलस्सुबह चार बजे उठ कर निकाला है।
बापू ये जानते थे। बापू को ये पता था कि शहरों में बैठे-बैठे पैसे को दुगना कर लेने की कई योजनाएं हैं, लेकिन गांवों में मेहनत करते-करते भी तन के कपड़े आधे हो जाते हैं। शहर के स्कूलों में पढ़ कर बच्चों को इतना ज्ञान मिलता है कि उन्हें लाखों की नौकरी मिल जायें पर गांव में बच्चे माँ-बाप के जोड़े हुए गहने-रूपये फीस में चले जाने पर भी अज्ञानी रह जाते हैं। इसलिए बापू ग्रामीण विकास की बात करते थे। गांव की खुशहाली की बात करते थे।
पहले तो ये जानना ज़रूरी है कि शहरी और ग्रामीण विकास में अंतर क्या है!यदि शहर की खुशहाली बढ़े, रोज़गार बढ़े, सुविधाएँ बढ़ें तो ये शहरी विकास है। और यदि यही सब बातें गांवों में बढ़ें तो ये ग्रामीण विकास है। मतलब ये हुआ कि विकास चाहे शहरों में हो या गांवों में, इस से देश का भला तो होता ही है।
तो फिर बापू ग्रामीण विकास की बात क्यों करते थे? ग्रामीण विकास को देश के लिए ज़रूरी क्यों मानते थे? गांवों के विकास की बात इसलिए होती थी, क्योंकि हमारे देश की अस्सी प्रतिशत जनसँख्या गांवों में रहती है। यदि गांव खुशहाल होंगे तो ज़्यादा आबादी को इस विकास का लाभ मिलेगा। लोग रोजगार और रोटी के लिए गांव छोड़ कर शहर की ओर नहीं भागेंगे।
दूसरे,बापू ये मानते थे कि पूँजी गांवों में पैदा होती है शहरों में पैदा नहीं होती। वहां तो उसका प्रयोग होता है, बंटवारा होता है, उपभोग होता है। उपजाने का काम गांवों का है। हर तरह की उपज वहां होती है। गांवों को विकसित बनाने से उत्पादन का काम और ज़ोर पकड़ेगा।गांव में काम करने वाले खुशहाल होंगे तो वे देश की उन्नति में ज़्यादा योगदान देंगे।
शहर में लोग एक-एक फुट ज़मीन बेच कर हज़ारों रूपये कमा लेते हैं,लेकिन गांव में जिनके पास लम्बी-चौड़ी धरती है उनके तन पर ठीक से कपड़ा भी नहीं होता।उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ पाते। उनकी बीमारी के इलाज के लिए अच्छे डॉक्टर,अच्छे अस्पताल नहीं होते। जबकि शहरों में सुख-सुविधाओं में जीने वालों की रोटी गांवों से आती है। हल गांवों में चलते हैं।
एयर कंडीशंड कमरे में सवेरे नौ बजे उठ कर दोपहर पांच सितारा होटल में लंच के लिए पनीर का ऑर्डर देने वाले ये नहीं जानते कि इस पनीर के लिए दूध किसी फटेहाल किसान ने सर्दी-गर्मी-बरसात में अलस्सुबह चार बजे उठ कर निकाला है।
बापू ये जानते थे। बापू को ये पता था कि शहरों में बैठे-बैठे पैसे को दुगना कर लेने की कई योजनाएं हैं, लेकिन गांवों में मेहनत करते-करते भी तन के कपड़े आधे हो जाते हैं। शहर के स्कूलों में पढ़ कर बच्चों को इतना ज्ञान मिलता है कि उन्हें लाखों की नौकरी मिल जायें पर गांव में बच्चे माँ-बाप के जोड़े हुए गहने-रूपये फीस में चले जाने पर भी अज्ञानी रह जाते हैं। इसलिए बापू ग्रामीण विकास की बात करते थे। गांव की खुशहाली की बात करते थे।
Sach
ReplyDeleteDhanyawad
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