सफलता अवसरों से जुड़ी है। अवसर कभी प्रयास करने से मिलते हैं तो कभी स्वाभाविक रूप से मिल जाते हैं। स्वयं मिले अवसरों को हम भाग्य का वरदान मानते हैं। कोशिश कर के मिलने वाले अवसरों को हम कर्म का फल कहते हैं। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि हमें जीवन में कोई अवसर प्रयास करने से मिला या स्वतः ही मिल गया। महत्वपूर्ण यह है कि हमने उस अवसर का लाभ कैसे उठाया। अवसर पर हमारी क्रिया - प्रतिक्रया कैसी रही। किसी मौके पर हम यदि उदासीन रहे तो अवसर फिसल कर निकल जाएगा। यदि हम तत्पर रहे तो शायद हम अवसर का लाभ उठा सकें। यहाँ एक बार फिर यह गुंजाइश है कि हमारी तत्परता के बाद भी सफलता न मिले अथवा उदासीनता के बावजूद भी हम किसी तीसमारखां की भांति सफल हो जाएँ। ऐसे में फिर यही बात आएगी कि यह भाग्य का खेल है।
चलिए मैं आपको अपने जीवन के कुछ ऐसे अवसरों के बारे में बताता हूँ। इन पर मेरी प्रतिक्रिया क्या रही यह भी आपको बताऊंगा। बाद में पूरी ईमानदारी से आपके समक्ष यह भी स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं होगा कि मुझे सफलता मिली या नहीं।
मैं जब १० वर्ष का था, अप्रैल में वार्षिक परीक्षा के बाद पांचवी कक्षा का मेरा परिणाम आया। मुझे अपने विद्यालय के सभी वर्गों में मिलाकर पहला स्थान मिला था। यह मेरे जीवन का एक अवसर था, जो मुझे भविष्य के किसी सपने के लिए उकसादे। ऐसा ही हुआ, मैं मन ही मन सोच बैठा कि मुझे बड़ा होकर एक इंजिनियर बनना चाहिए। मेरे परिचितों और शुभचिंतकों ने भी ऐसा ही माना। इससे यह वस्तुतः मुझे मिला एक अवसर ही बन गया।
इस पर मेरी प्रतिक्रिया बहुत लापरवाही की रही। मैंने इस परिणाम का विश्लेषण नहीं किया। मैंने या अन्य लोगों ने यह देखने का कष्ट नहीं किया कि मेरे विषयवार अंक कैसे हैं। मुझे चित्रकला में बानवे प्रतिशत, हिंदी में नवासी प्रतिशत और सामाजिक ज्ञान में अठ्यासी प्रतिशत अंक मिले थे, जिन्होंने कक्षा की अन्य मेधावी छात्राओं सरिता और चन्द्रकिरण को मुझसे बहुत पीछे छोड़ दिया था। चन्द्रकिरण के विज्ञानं, अंग्रेजी और गणित में नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक थे। जो मेरे इन विषयों के अंकों से बहुत अधिक थे। मैंने आगामी वर्षों में अंकों की इस असमानता को पाटने के लिए कुछ नहीं किया।
नतीजा यह हुआ कि मेरी लापरवाही ने मुझे कर्म के स्थान पर भाग्य का सहारा दिया। जल्दी ही बड़ी असफलता मेरे हाथ लगी। मेरे भविष्य ने मेरे मन के उस निर्णय को गलत सिद्ध किया और एक पेनेल्टी कॉर्नर गोल बनने से रह गया।
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Saturday, January 29, 2011
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तैयारी + अवसर = सफलता
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