Wednesday, January 26, 2011

फिर शुरू करना है

एक लम्बा अंतराल हो गया। जो लोग जुड़ गए थे धीरे - धीरे उदासीन होने लगे। कुछ एक ने थोड़ा धैर्य रखा, मुझे फ़ोन पर संपर्क करके पूछते रहे कि में फिर कब उनसे बात करने जा रहा हूँ। पत्रिका के बारे में भी काफी लोगों में उत्सुकता दिखाई दी, इन्हीं सब शुभचिंतकों का ध्यान रखकर मै फिर से सक्रिय हुआ हूँ। सारा श्रेय इन्हीं लोगों को जाता है। अब प्रयास करूँगा कि बीच में कोई व्यवधान न हो। पत्रिका निकालने की बात लम्बी आयोजना से जुडी है। पर आपसे रोज बात होती रहे यही काफी है। इस बार भारत में भी बहुत सर्दी पड़ी है। कई बार बर्फ़बारी के समाचार भी मिले। जयपुर जेसे शहर में जहाँ हम बचपन से बर्फ पैसे देकर खरीदते रहे हैं, घास पर ओस की बूंदों को बर्फ की तरह जमा देखा गया। हडसन नदी के जम जाने और उसके ऊपर बड़ी संख्या में बच्चों को स्केटिंग करते देखने के अभ्यस्त लोगों को राजस्थान की झीलों पर बर्फ की पतली सतह देखना अदभुत लगा।
बर्फ का जमना कौतुहल जगाता है, लेकिन एक तीखी आशावादिता को भी पोसता है। मन जानता है कि बर्फ को पिघलाना ही होता है। यह आस भविष्य को ऊष्मा देती है। हलकी सी तपिश पाकर भविष्य खिल भी जाता है और चल भी देता है वर्तमान की ओर आने को। हम कल भविष्य को और भी पास आया देखेंगे।

No comments:

Post a Comment

शोध

आपको क्या लगता है? शोध शुरू करके उसे लगातार झटपट पूरी कर देने पर नतीजे ज़्यादा प्रामाणिक आते हैं या फिर उसे रुक- रुक कर बरसों तक चलाने पर ही...

Lokpriy ...