Wednesday, January 26, 2011

अपने पैरों पर खड़े होने का सुख

अब मेरे पास कोई नहीं है । वैभव बहुत दूर भारत से बाहर है और आस्था राजस्थान से बाहर है.आज तो सोभेशजी भी नेपाल मैं हैं.कनिका महाराष्ट्र मैं हैं.ऐसा जरिया कौन सा हो सकता है कि इन सभी से एक साथ बात हो सके.बस यही बात मुझे संतोष दे रही है कि अपने ब्लॉग के madhyamसे यह संभव हो रहा है.मैं सबसे पहले उन लोगों को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने इस सुविधा को जन्म दिया है.शायद उन्हें लगा होगा कि सब के बीच बातों का आदान प्रदान जरूरी है चाहे कोई कितना भी दूर हो.आज २६ जनवरी है.भारत के लिए एक न भुलाया जा सकने वाला दिन.मुझे खुशी है कि मैं भी आज को अपने लिए महत्वपूर्ण दिन बना पाया हूँ.एक दिन वह भी था कि जब मैं कहा करता था कि यन्त्र हमारे जीवन की रफ़्तार रोक देंगे.आज मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ। आज मैं कहूँगा कि यन्त्र हमारे ठहरे जीवन को रफ़्तार देने की ताकत रखते हैं.

1 comment:

  1. समय और अनुभव के साथ हमारे विचार परिमार्जित होने ही चाहिए. (हाँ, सर्वज्ञानियों की बात अलग है)
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

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