Thursday, January 27, 2011

तैरने का अहसास

हम पानी में तैरते हैं.पानी में तैरते समय केवल पानी दिखाई देता है.कभी कभी बहुत करीब की काई या कीट भी। पानी में तैरते समय भौतिक शास्त्र के कुछ सिद्धांत या रसायन शास्त्र की कुछ क्रियाएं भी हमारे इर्द गिर्द चलते हैं.किन्तु एक तैराकी हवा में भी होती है। इस तैराकी में हमारी आँखों के आगे इतना कुछ आता है कि आँखें उसे समेट भी नहीं पातीं। मस्तिष्क बौना सा खड़ा रह जाता है और दुनिया परत दर परत खुलती जाती है। इस तैराकी में दिमाग पल पल समृद्ध होता जाता है। चारों ओर के रंग बढ़ते जाते हैं।इस तैराकी के दौरान हमारे साथ साथ एक हंस चलता है.एक वीणा होती है जो एक स्त्री के हाथों में होती है.यह स्त्री द्रश्य अद्रश्य रूप में जब तक हमारे साथ होती है हम पल -पल धनवान होते जाते हैं। जब यह साथ नहीं होती हम रास्ता भटक जाते हैं। ज़माने भर की हवा में तैरते हुए भी हम निर्धन रह जाते हैं। यही स्त्री हमें धन की असली परिभाषा भी सिखाती है। इस स्त्री के दिए मोती -माणिक हम पहचान पायें तो जीवन सार्थक हो जाता है। इस स्त्री को सादर नमन, इसकी महिमा को नमन।

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...