Monday, January 31, 2011

शेयर खाता खोल सजनियाँ 5

बच्चे ना हों गोद मिलेंगे, बीबी ना हो चल जाएगा
लेकिन शेयर नहीं मिले तो जीवन यूं ही ढल जाएगा
लाइफ का ये पेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
प्रलय हुई धरती पर फिर भी शेयर तो आबाद रहेगा
जब तक सूरज- चाँद रहेगा ये धंधा नाबाद रहेगा
खूब दलाली देकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
करनी हो बेटे की शादी, ब्रोकर से पत्री मिलवाना
जन्म-कुण्डली छोड़ बहू की, भाव-पत्र नक्षत्र मिलाना
शेयर वाला नैहर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
साथ बराती वे ही जाएँ, जिनको ऊंचे शेयर भायें
दुल्हन के द्वारे जाते में शेयर भावों पर बतियाएं
सोफा-फ्रिज-स्कूटर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ ४

सदी बीसवीं मान न रखे इसकी खोज नहीं है शेयर
किया राधिका ने कान्हा को साथ रुकमनी के ही शेयर
ये इतिहास धरोहर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
सत्य सनातन शेयर गाथा, कोई नया नहीं है शेयर
पांडव पांच किया करते थे, एक द्रौपदी को ही शेयर
मांग-छीन-रो-हंसकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
कोई मिल जब नफ़ा कमाती, उसका चढ़ जाता है शेयर
जो घाटे में जाती, जाता उसका ठीक रसातल शेयर
टोटा-नफ़ा तौलकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
मूंछें तो फिर भी उग जातीं, सही-सलामत होठ रहें तो
बापू का अकडू भाई भी, चाचू होता नोट रहें तो
मूंछों के ये हेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।

Sunday, January 30, 2011

शेयर खाता खोल सजनियाँ 3

लेने को जायेगा जब भी लम्बी-चौड़ी लाइन होगी, घबराकर प्यासा मत आना, लाइन में ही वाइन होगी।
तू भी करना डेयर, लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
बांग नहीं देते मुर्गे अब, उठ कर भाव बताते हैं वो, जिनके गिरते गिर जाते हैं, जिनके चढ़ते चढ़ जाते वो।
गिर कर लेना चढ़कर लेना ,जैसे भी हो शेयर लेना।
ब्रोकर जी को शीश नवाना, धूप दीप सा चैक चढ़ाना, चरनामृत सा शेयर पाकर तू धारक की पदवी पाना।
गद्दी फेंक के चेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
गाय हमारी माता है यदि, पूजनीय है उसका गोबर, तब "बुल" ही तो पिता हमारा तुमको नमन करें हे ब्रोकर।
जो देदे सो बेहतर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
शेयर से ही दुनियां चलती, दुनियां में होता है शेयर, भारत-पाक बने जब पाया, नेहरू से जिन्ना ने शेयर।
शेयर देकर शेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 1- 2

जोड़-तोड़ की इस दुनिया में,पांच-पांच दस वैसे होते
पर सब सूत्र बदल जाते हैं, अगर जेब में पैसे होते
तुम पैसे की केयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना
खेतों में गेंहूँ बोने से गेहूं का पौधा लहराता 
लेकिन इस बाजार चवन्नी, बोकर फल 'रुपया' लहराता
तुम प्रॉफिट ये रेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना
बाबा की जेबें हों खाली,अम्मा का बटुआ तो होगा
भाभी से छिप कर ले लेना, भैया का खटका जो होगा
सिंगल लेना पेयर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना
छीन झपट कर लूटपाट कर, चोरी करना फाका करना
चुरा-मांग कर छुरा मार कर,मर्डर करना डाका करना
फाउल लेना फेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना
रिश्ते होते रूपरंग से, नाते जुड़ते मन से भैया
पर सब रंग बदल जाते हैं, अगर पास में होय रुपैया
लेकर देना देकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना
बात खरी ये सुन लो तुम भी, अगर जेब में नामा होता,
अम्मा का बेकार निखट्टू, भाई प्यारा मामा होता
रिश्ते देखभाल कर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना
  
रोग व्याधि पर जोर नहीं है, कब कडकी छा-जाये तुझ पर,
जन्म मरण पर जोर नहीं है जब तक है तू लेले शेयर
है ये जीवन भंगुर लेना , जैसे भी हो शेयर लेना
मंदिर- मस्जिद- चर्च बनाओ सौ जोखिम प्राणों में फंसते,
पर शेयर बाज़ार बने तो नेता जनता दोनों हंसते
अनुकम्पा की चेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना
रोटी अगर तुझे ना मिलती चावल खाकर पेट भरेगा,
लेकिन शेयर नहीं मिला तो लाइफ कैसे सेट करेगा
साम-दाम अपनाकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना
पंजाबी गुजराती सिंधी, राजस्थानी या बंगाली,
इस जादू के मंतर से ही,सब की दूर हुई कंगाली
ये थाली का घेवर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना
शिक्षा मिलती डोनेशन से, डोनेशन रिश्वत से मिलती,
रिश्वत मिलती पोजीशन से, पोजीशन शेयर से मिलती
तू दिन रात भुलाकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना
ब्याज मिलेगा क़र्ज़ मिलेगा, हर हफ्ते हर वर्ष मिलेगा,
अगर जेब में शेयर होंगे, हर्षद जैसा हर्ष मिलेगा
जमी माल की लेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना

एक खामोश उदास दिन

आज तीस जनवरी है। सुबह एक सायरन बजा था जिसका अर्थ यह था कि अब पूरे देश को दो मिनट का मौन रखना है.विधाता ने सभी प्राणियों में से केवल मनुष्य को ही बहुआयामी वाचालता दी है। सब कुछ बोलने की अद्भुत शक्ति। फिर भी एक सायरन ने चिल्ला-चिल्ला कर यह एलान किया कि कोई न बोले।केवल एक मनुष्य की ही भूल के कारण। वह भूल जो आज से तरेसठ साल पहले हुई। हम कितने नैतिक और संवेदन शील हैं।
लेकिन क्या हमारी यह नैतिक संवेदन शीलता केवल कुछ मुद्दों पर ही है?क्या हमें और ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता जो थोड़ी देर के लिए हमारी ज़बान बंद करदे?चलिए, न रहें हम चुप ,पर क्या हमारे इर्द-गिर्द ऐसा कुछ नहीं दीखता जिस पर हमबार-बार बोलें।
बोलने न बोलने का यह विवाद हम सब की अपनी-अपनी मर्जी पर छोड़ते हैं। जो चाहे बोले जो चाहे चुप रहे। भारत में आज करोड़ों लोग ऐसे हैं,जिनके लिए गांधीजी अब केवल दफ्तरों में सजाने वाली एक तस्वीर हैं। सड़कों और पार्कों में लगाईं जाने वाली मूर्ती हैं। इस जमात को यह नहीं मालूम, कि इस इंसान ने ऐसा क्या किया था कि इस की मौत पर हम चुप रहें। गलती इन लोगों की भी कहाँ हैं। आज के भाग्य विधाता इनकी ज़िन्दगी पर भी तो चुप हैं।

Saturday, January 29, 2011

एक और भ्रम

सफलता अवसरों से जुड़ी है। अवसर कभी प्रयास करने से मिलते हैं तो कभी स्वाभाविक रूप से मिल जाते हैं। स्वयं मिले अवसरों को हम भाग्य का वरदान मानते हैं। कोशिश कर के मिलने वाले अवसरों को हम कर्म का फल कहते हैं। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि हमें जीवन में कोई अवसर प्रयास करने से मिला या स्वतः ही मिल गया। महत्वपूर्ण यह है कि हमने उस अवसर का लाभ कैसे उठाया। अवसर पर हमारी क्रिया - प्रतिक्रया कैसी रही। किसी मौके पर हम यदि उदासीन रहे तो अवसर फिसल कर निकल जाएगा। यदि हम तत्पर रहे तो शायद हम अवसर का लाभ उठा सकें। यहाँ एक बार फिर यह गुंजाइश है कि हमारी तत्परता के बाद भी सफलता न मिले अथवा उदासीनता के बावजूद भी हम किसी तीसमारखां की भांति सफल हो जाएँ। ऐसे में फिर यही बात आएगी कि यह भाग्य का खेल है।
चलिए मैं आपको अपने जीवन के कुछ ऐसे अवसरों के बारे में बताता हूँ। इन पर मेरी प्रतिक्रिया क्या रही यह भी आपको बताऊंगा। बाद में पूरी ईमानदारी से आपके समक्ष यह भी स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं होगा कि मुझे सफलता मिली या नहीं।
मैं जब १० वर्ष का था, अप्रैल में वार्षिक परीक्षा के बाद पांचवी कक्षा का मेरा परिणाम आया। मुझे अपने विद्यालय के सभी वर्गों में मिलाकर पहला स्थान मिला था। यह मेरे जीवन का एक अवसर था, जो मुझे भविष्य के किसी सपने के लिए उकसादे। ऐसा ही हुआ, मैं मन ही मन सोच बैठा कि मुझे बड़ा होकर एक इंजिनियर बनना चाहिए। मेरे परिचितों और शुभचिंतकों ने भी ऐसा ही माना। इससे यह वस्तुतः मुझे मिला एक अवसर ही बन गया।
इस पर मेरी प्रतिक्रिया बहुत लापरवाही की रही। मैंने इस परिणाम का विश्लेषण नहीं किया। मैंने या अन्य लोगों ने यह देखने का कष्ट नहीं किया कि मेरे विषयवार अंक कैसे हैं। मुझे चित्रकला में बानवे प्रतिशत, हिंदी में नवासी प्रतिशत और सामाजिक ज्ञान में अठ्यासी प्रतिशत अंक मिले थे, जिन्होंने कक्षा की अन्य मेधावी छात्राओं सरिता और चन्द्रकिरण को मुझसे बहुत पीछे छोड़ दिया था। चन्द्रकिरण के विज्ञानं, अंग्रेजी और गणित में नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक थे। जो मेरे इन विषयों के अंकों से बहुत अधिक थे। मैंने आगामी वर्षों में अंकों की इस असमानता को पाटने के लिए कुछ नहीं किया।
नतीजा यह हुआ कि मेरी लापरवाही ने मुझे कर्म के स्थान पर भाग्य का सहारा दिया। जल्दी ही बड़ी असफलता मेरे हाथ लगी। मेरे भविष्य ने मेरे मन के उस निर्णय को गलत सिद्ध किया और एक पेनेल्टी कॉर्नर गोल बनने से रह गया।

Friday, January 28, 2011

जगतपुरा

जयपुर के पास जगतपुरा नाम की जो जगह है, वह कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। यह स्थान जयपुर के विमानतल को चारों ओर से घेरता है। जब से जयपुर ने अंतर्राष्ट्रीय नक़्शे पर आने की ठानी है, तब से यहाँ का विमानतल भी बहुत सुन्दर हो गया है। अपनी सड़कों की चौड़ाई और खुलेपन के लिए तो जयपुर सदा से ही विख्यात है ही। इसी जगतपुरा में जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी भी अवस्थित है, जिसने अपने नाम में गजब की विपणनआत्मक चतुराई दिखाई है। यह विश्व विद्यालय अपने नाम के संक्षिप्तीकरण में जेएनयू बनकर सुविख्यात जवाहर लाल नेहरु विश्व विद्यालय के समकक्ष स्वतः ही आ खड़ा हुआ है। पिछले कुछ वर्षो से जयपुरी स्थापत्य और इसके प्रति अप्रवासियों का दृष्टिकोण जिस तरह से निर्मित हुआ है, जयपुर में एक विशाल एन आर आई कालोनी की अहमियत उभर कर तेजी से आ गई है। जगतपुरा इस नवोन्मेष से भी वाबस्ता है। यहाँ बड़ी मात्र में महलनुमा मकान अप्रवासी भारतीयों के लिए बनाये गए हैं। जयपुर की शान शौकत को आवासन मंडल जैसे निपट सरकारी विभाग ने भी धरा के इस टुकड़े पर शान से जिया है।
इसी जगतपुरा में एक छोटा सा प्रयोग हम भी करने जा रहे हैं। हम जल्दी ही उस क्षेत्र के युवओं को रोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रमों से जोड़ेंगे। ऐसे युवक युवतियां जिन्होंने अपनी विद्यालयीन पढ़ाई पूरी कर ली है और साथ ही थोड़ी बहुत आमदनी के साथ अपनी आगे की पढ़ाई निजी विद्यार्थी के तौर पर करना चाहते हैं, हमारे इस प्रकल्प से अवश्य ही लाभान्वित होंगे। जो विद्यार्थी जयपुर में रहकर विभिन्न प्र्तियोगिताओं की तैय्यारी कर रहे हैं, उनके लिए भी ऐसे प्रक्षिक्षण लाभदायक हैं। युवाओं के मानस को आर्थिक संबल प्रदान करने के इस आयोजन में हम आपको भी आमंत्रित करते हैं। यदि आप किशोरावस्था को पार कर चुके हैं और स्वयं या अपने परिवार के लिए वितीय सुविधाओं का छोटा सा सपना देखते हैं तो आप हमसे संपर्क करें । हर बड़े सपने का रास्ता छोटे सपनों से होकर जाता हैं।

Thursday, January 27, 2011

तैरने का अहसास

हम पानी में तैरते हैं.पानी में तैरते समय केवल पानी दिखाई देता है.कभी कभी बहुत करीब की काई या कीट भी। पानी में तैरते समय भौतिक शास्त्र के कुछ सिद्धांत या रसायन शास्त्र की कुछ क्रियाएं भी हमारे इर्द गिर्द चलते हैं.किन्तु एक तैराकी हवा में भी होती है। इस तैराकी में हमारी आँखों के आगे इतना कुछ आता है कि आँखें उसे समेट भी नहीं पातीं। मस्तिष्क बौना सा खड़ा रह जाता है और दुनिया परत दर परत खुलती जाती है। इस तैराकी में दिमाग पल पल समृद्ध होता जाता है। चारों ओर के रंग बढ़ते जाते हैं।इस तैराकी के दौरान हमारे साथ साथ एक हंस चलता है.एक वीणा होती है जो एक स्त्री के हाथों में होती है.यह स्त्री द्रश्य अद्रश्य रूप में जब तक हमारे साथ होती है हम पल -पल धनवान होते जाते हैं। जब यह साथ नहीं होती हम रास्ता भटक जाते हैं। ज़माने भर की हवा में तैरते हुए भी हम निर्धन रह जाते हैं। यही स्त्री हमें धन की असली परिभाषा भी सिखाती है। इस स्त्री के दिए मोती -माणिक हम पहचान पायें तो जीवन सार्थक हो जाता है। इस स्त्री को सादर नमन, इसकी महिमा को नमन।

Wednesday, January 26, 2011

अपने पैरों पर खड़े होने का सुख

अब मेरे पास कोई नहीं है । वैभव बहुत दूर भारत से बाहर है और आस्था राजस्थान से बाहर है.आज तो सोभेशजी भी नेपाल मैं हैं.कनिका महाराष्ट्र मैं हैं.ऐसा जरिया कौन सा हो सकता है कि इन सभी से एक साथ बात हो सके.बस यही बात मुझे संतोष दे रही है कि अपने ब्लॉग के madhyamसे यह संभव हो रहा है.मैं सबसे पहले उन लोगों को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने इस सुविधा को जन्म दिया है.शायद उन्हें लगा होगा कि सब के बीच बातों का आदान प्रदान जरूरी है चाहे कोई कितना भी दूर हो.आज २६ जनवरी है.भारत के लिए एक न भुलाया जा सकने वाला दिन.मुझे खुशी है कि मैं भी आज को अपने लिए महत्वपूर्ण दिन बना पाया हूँ.एक दिन वह भी था कि जब मैं कहा करता था कि यन्त्र हमारे जीवन की रफ़्तार रोक देंगे.आज मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ। आज मैं कहूँगा कि यन्त्र हमारे ठहरे जीवन को रफ़्तार देने की ताकत रखते हैं.

फिर शुरू करना है

एक लम्बा अंतराल हो गया। जो लोग जुड़ गए थे धीरे - धीरे उदासीन होने लगे। कुछ एक ने थोड़ा धैर्य रखा, मुझे फ़ोन पर संपर्क करके पूछते रहे कि में फिर कब उनसे बात करने जा रहा हूँ। पत्रिका के बारे में भी काफी लोगों में उत्सुकता दिखाई दी, इन्हीं सब शुभचिंतकों का ध्यान रखकर मै फिर से सक्रिय हुआ हूँ। सारा श्रेय इन्हीं लोगों को जाता है। अब प्रयास करूँगा कि बीच में कोई व्यवधान न हो। पत्रिका निकालने की बात लम्बी आयोजना से जुडी है। पर आपसे रोज बात होती रहे यही काफी है। इस बार भारत में भी बहुत सर्दी पड़ी है। कई बार बर्फ़बारी के समाचार भी मिले। जयपुर जेसे शहर में जहाँ हम बचपन से बर्फ पैसे देकर खरीदते रहे हैं, घास पर ओस की बूंदों को बर्फ की तरह जमा देखा गया। हडसन नदी के जम जाने और उसके ऊपर बड़ी संख्या में बच्चों को स्केटिंग करते देखने के अभ्यस्त लोगों को राजस्थान की झीलों पर बर्फ की पतली सतह देखना अदभुत लगा।
बर्फ का जमना कौतुहल जगाता है, लेकिन एक तीखी आशावादिता को भी पोसता है। मन जानता है कि बर्फ को पिघलाना ही होता है। यह आस भविष्य को ऊष्मा देती है। हलकी सी तपिश पाकर भविष्य खिल भी जाता है और चल भी देता है वर्तमान की ओर आने को। हम कल भविष्य को और भी पास आया देखेंगे।

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...