Thursday, November 19, 2015

आपभी नाप सकते हैं असहिष्णुता

आजकल भारत में असहिष्णुता पर एक खास किस्म की बहस चल रही है। इस बहस में हिस्सा लेने के लिए मीडिया के विभिन्न चैनलों पर उन लोगों को आमंत्रित किया जाता है, जो किसी भी मुद्दे पर सहिष्णु नहीं हों। क्योंकि यदि वे सहिष्णु होंगे तो वे चर्चा के दौरान मुंह भी नहीं खोल पाएंगे। असहिष्णु लोगों द्वारा तेज़ आवाज़ में, जल्दी-जल्दी इस तरह चर्चा करनी होती है कि एक बार शुरू होने पर किसी के भी रोके से आप न रुकें,और केवल मुद्दे की बात को छोड़ कर बाकी सब कुछ बिना रुके कहते रह सकें।आप इतने तन्मय होकर चीखें कि आपके सामने से माइक अथवा कैमरा हटा लिए जाने का भी आप पर असर न हो। सहिष्णु लोगों को यह अभ्यास नहीं होता।
आइये देखें, कि असहिष्णुता कैसे लायी जाती है, और कितनी?
आजकल प्रचलित परम्परा के अनुसार किसी भी समाचार चैनल के पास प्रति दस मिनट में से आठ मिनट विज्ञापनों के लिए तथा दो मिनट समाचारों के लिए उपलब्ध होते हैं।  कर्णभेदी मधुर पार्श्वसंगीत के साथ चैनल के पहचान चित्र-जंजाल और बोधवाक्य के लिए तीस-चालीस सैकंड का समय भी इन्हीं दो मिनट में से निकालना होता है। क्योंकि आठ मिनट के विज्ञापन तो वैसे भी साढ़े आठ मिनट ले लेते हैं।
अब आपको दो मिनट में पिच्चासी ख़बरों का रसास्वादन कराया जाना है, स्टार्ट ....
१. बॉलीवुड की मशहूर आयटम गर्ल ने किया जुहू-बीच पर डांस
२. नाचीं हरी चुनरी में
३. दुपट्टा था हल्का पीला
४. 'क' दल के एक नेता ने दिया विवादास्पद बयान
५. साक्षात्कार में कहा- हम नहीं देखते नचनियां का नाच
६. 'ख' दल के प्रवक्ता ने इसे नृत्यकला का अपमान बताया
७. सुदूर प्रान्त की राजधानी में एक राजनर्तकी ने कुपित होकर लौटाया उन्हें मिला सम्मान
८. राजनर्तकी के समर्थन में उतरे मृदंग वादक
९. 'ग' दल ने शहर के मुख्य मार्गों से नगर कोतवाल की कोठी तक कलाकारों के साथ मार्च-पास्ट किया
१०. शहर के मशहूर कालेज में इस असहिष्णुता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
११. 'घ'दल ने की इस मुद्दे पर सरकार के इस्तीफ़े की मांग
बस, इसके बाद आपने टीवी ऑफ़ कर दिया। तो आपकी असहिष्णुता हुई-"सौ प्रतिशत"[आप राष्ट्र की रंग-रंगीली हलचल को सह नहीं न पाये!]
                    

2 comments:

  1. सही माप बताया आपने , वैसे भी दूसरों को असहिष्णु कहने वाले अपने गिरेबां में झाँकने का प्रयासनही करते , उन्होंने भी चुनावी रोटियां खाई अब वे पुरस्कार लौटाने वाले कहाँ चले गए , माहौल तो अब भी वैसा ही है

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  2. aayenge...aayenge....loktantra me chunaav to ek satat prakriya hai...fir aayenge!

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...