तभी लड़कियों के झुण्ड के बीच से अविनाश की तेज आवाज़ आई- ये बब्बर शेर है, बब्बर शेर ! देठो -देठो ...इस टे बाल ! चारों टरफ़ बाल ही बाल ...बब्बर शेर ...जंडल टा राजा !
बड़े सर को पास आया देख बच्चे संयत हो गए थे। लड़कियां भी झुण्ड से तिरोहित होने लगी थीं। सभी आगे बढ़ने लगे।
बच्चों ने भरपूर आनंद लिया पिकनिक का। शाम गहराने से पहले ही बच्चों को अपने-अपने घर पहुंचा दिया गया।
अगले दिन अवकाश था लेकिन बच्चों की एक्स्ट्रा एक्टिविटीज़ चल रही थीं। मैं अपने नियमित राउंड पर था। पिछवाड़े के खेल मैदान के किनारे-किनारे चलता हुआ मैं स्वीमिंग पूल की ओर जाने लगा।
विद्यालय का स्वीमिंग पूल तीन शिफ्टों में चलता था। सुबह छोटे बच्चे आते थे जिनके लिए कॉमन व्यवस्था थी। बारह वर्ष तक की आयु के लड़के-लड़कियां इसमें तैरना सीखते थे। बाद में दोपहर को लड़के और शाम को लड़कियां आती थीं। ये बड़ी कक्षाओं के लिए निर्धारित समय था। पूल पर अलग-अलग दो वाशरूम और चेंजरूम बने हुए थे। छोटे बच्चों और लड़कियों का एक वाशरूम था तथा बड़े लड़कों के लिए दूसरा।
मैं कल की सैर के विचारों में खोया धीरे-धीरे चलता हुआ स्वीमिंग पूल की सीढ़ियों तक आ गया। सुबह की बच्चों वाली शिफ्ट चल रही थी। कोच मैडम छोटे बच्चों को तैरना सिखा रही थीं। पिछले दिनों पड़ने वाली गर्मी और उमस के कारण बच्चों को ठन्डे पानी में अठखेलियां करना भा रहा था।
सीढ़ियों पर कदम रखते ही भीतर का कोलाहल सुनाई देने लगा। शायद इस शिफ्ट में बच्चों की संख्या भी कुछ ज्यादा थी जिससे चहल-पहल भी बढ़ गयी थी।
तभी तो कमर में ट्यूब बांधकर हाथ-पैर मारते बच्चों को पूरी तरह से जगह भी नहीं मिल पा रही थी। वे एक-दूसरे पर पानी की बौछारें उछालते जीवन के झंझावातों के लिए मानो अपने को तैयार करने की मीठी मुहिम में जुटे थे। मुझे कोच मैडम की आवाज़ सुनाई दी। वे एक लड़के को इशारे से पानी से बाहर आने को कह रही थीं। गौरव नाम का वह लड़का था तो बच्चों की इसी क्लास का, मगर शायद देर से पढ़ने या फेल हो जाने के कारण अपनी कक्षा के बच्चों से डील-डौल में ज़रा बड़ा लगता था।
गौरव अपने माथे पर छितराये भीगे बालों को हाथों से पीछे करता पानी निकल कर कोच के पास आने लगा। उसके स्वीमिंग कॉस्ट्यूम से पानी की धार अब भी टपक रही थी।
[... जारी ]
बड़े सर को पास आया देख बच्चे संयत हो गए थे। लड़कियां भी झुण्ड से तिरोहित होने लगी थीं। सभी आगे बढ़ने लगे।
बच्चों ने भरपूर आनंद लिया पिकनिक का। शाम गहराने से पहले ही बच्चों को अपने-अपने घर पहुंचा दिया गया।
अगले दिन अवकाश था लेकिन बच्चों की एक्स्ट्रा एक्टिविटीज़ चल रही थीं। मैं अपने नियमित राउंड पर था। पिछवाड़े के खेल मैदान के किनारे-किनारे चलता हुआ मैं स्वीमिंग पूल की ओर जाने लगा।
विद्यालय का स्वीमिंग पूल तीन शिफ्टों में चलता था। सुबह छोटे बच्चे आते थे जिनके लिए कॉमन व्यवस्था थी। बारह वर्ष तक की आयु के लड़के-लड़कियां इसमें तैरना सीखते थे। बाद में दोपहर को लड़के और शाम को लड़कियां आती थीं। ये बड़ी कक्षाओं के लिए निर्धारित समय था। पूल पर अलग-अलग दो वाशरूम और चेंजरूम बने हुए थे। छोटे बच्चों और लड़कियों का एक वाशरूम था तथा बड़े लड़कों के लिए दूसरा।
मैं कल की सैर के विचारों में खोया धीरे-धीरे चलता हुआ स्वीमिंग पूल की सीढ़ियों तक आ गया। सुबह की बच्चों वाली शिफ्ट चल रही थी। कोच मैडम छोटे बच्चों को तैरना सिखा रही थीं। पिछले दिनों पड़ने वाली गर्मी और उमस के कारण बच्चों को ठन्डे पानी में अठखेलियां करना भा रहा था।
सीढ़ियों पर कदम रखते ही भीतर का कोलाहल सुनाई देने लगा। शायद इस शिफ्ट में बच्चों की संख्या भी कुछ ज्यादा थी जिससे चहल-पहल भी बढ़ गयी थी।
तभी तो कमर में ट्यूब बांधकर हाथ-पैर मारते बच्चों को पूरी तरह से जगह भी नहीं मिल पा रही थी। वे एक-दूसरे पर पानी की बौछारें उछालते जीवन के झंझावातों के लिए मानो अपने को तैयार करने की मीठी मुहिम में जुटे थे। मुझे कोच मैडम की आवाज़ सुनाई दी। वे एक लड़के को इशारे से पानी से बाहर आने को कह रही थीं। गौरव नाम का वह लड़का था तो बच्चों की इसी क्लास का, मगर शायद देर से पढ़ने या फेल हो जाने के कारण अपनी कक्षा के बच्चों से डील-डौल में ज़रा बड़ा लगता था।
गौरव अपने माथे पर छितराये भीगे बालों को हाथों से पीछे करता पानी निकल कर कोच के पास आने लगा। उसके स्वीमिंग कॉस्ट्यूम से पानी की धार अब भी टपक रही थी।
[... जारी ]
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