एक बड़े घुमावदार रास्ते के बाद बने पिंजरे के सामने किलकारियां भर-भर के लड़के खुश हो रहे थे। कुछ-एक तो हाथ हिला-हिला कर सीटियां मार रहे थे। पिंजरे के सामने के रास्ते के पार एक पीपल के पेड़ के नीचे कुछ लड़कियां जमा हो गयी थीं।
मैं उस ओर देखता हुआ कुछ बड़े-बड़े डग भरता हुआ बढ़ने लगा। मैंने देखा, लड़कियां पिंजरे के पास नहीं आ रही थीं बल्कि दूर पेड़ के नीचे झुण्ड में खड़ी मुंह फेर कर हंस रही थीं। वे इशारे में एक दूसरी को दिखा कर हँसतीं और उस ओर से मुंह घुमा लेतीं। आखिर ऐसा कौन सा जानवर था जिसे देख कर लड़के इतने प्रफुल्लित हो रहे हैं और लड़कियां शरमाकर इस तरह दूर हट रही हैं?
मैंने कदम कुछ और तेज़ कर दिए। तभी मेरा माथा ठनका-कहीं ऐसा तो नहीं कि पिंजरे में कोई जोड़ा रतिक्रिया कर रहा हो। जानवर में इतनी समझ थोड़े ही होती है कि वह भीड़ और एकांत के बीच फर्क कर सके। मुझे कुत्तों या गाय-बैलों के ऐसे कई सार्वजनिक दृश्य याद थे जब मैंने उनकी ऐसी अवस्था में उन्हें देख कर लड़कों को खुश होते और लड़कियों को मुंह छिपा कर चुपचाप वहां से गुज़रते देखा था। तो क्या इस अवस्था के छोटे बच्चे भी ऐसे दृश्यों से आनंदित होने लगे? ये क्या होता जा रहा है, मैं सोच में डूबा उस ओर बढ़ा।
मेरा आश्चर्य वहां पहुँच कर और भी बढ़ गया, क्योंकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं था। वह तो बब्बर शेर का पिंजरा था। बचपन में सुनी कई कहानियों के आधार पर लड़के जंगल के राजा का इस्तकबाल खुश होकर, सीटियां और किलकारियां भर के कर रहे थे और वह शान से अपने दर्शकों को देखता हुआ इधर से उधर पिंजरे में टहल रहा था। लड़कों की ख़ुशी जायज़ थी।
लेकिन लड़कियों का शरमाना और मुंह छिपा कर हंसना मेरी समझ में बिलकुल नहीं आया। क्या वे शेर से डर रही थीं? क्या जंगल का राजा उन्हें उत्साह-उल्लास से नहीं भर रहा था? आखिर क्या बात थी?
[... जारी ]
मैं उस ओर देखता हुआ कुछ बड़े-बड़े डग भरता हुआ बढ़ने लगा। मैंने देखा, लड़कियां पिंजरे के पास नहीं आ रही थीं बल्कि दूर पेड़ के नीचे झुण्ड में खड़ी मुंह फेर कर हंस रही थीं। वे इशारे में एक दूसरी को दिखा कर हँसतीं और उस ओर से मुंह घुमा लेतीं। आखिर ऐसा कौन सा जानवर था जिसे देख कर लड़के इतने प्रफुल्लित हो रहे हैं और लड़कियां शरमाकर इस तरह दूर हट रही हैं?
मैंने कदम कुछ और तेज़ कर दिए। तभी मेरा माथा ठनका-कहीं ऐसा तो नहीं कि पिंजरे में कोई जोड़ा रतिक्रिया कर रहा हो। जानवर में इतनी समझ थोड़े ही होती है कि वह भीड़ और एकांत के बीच फर्क कर सके। मुझे कुत्तों या गाय-बैलों के ऐसे कई सार्वजनिक दृश्य याद थे जब मैंने उनकी ऐसी अवस्था में उन्हें देख कर लड़कों को खुश होते और लड़कियों को मुंह छिपा कर चुपचाप वहां से गुज़रते देखा था। तो क्या इस अवस्था के छोटे बच्चे भी ऐसे दृश्यों से आनंदित होने लगे? ये क्या होता जा रहा है, मैं सोच में डूबा उस ओर बढ़ा।
मेरा आश्चर्य वहां पहुँच कर और भी बढ़ गया, क्योंकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं था। वह तो बब्बर शेर का पिंजरा था। बचपन में सुनी कई कहानियों के आधार पर लड़के जंगल के राजा का इस्तकबाल खुश होकर, सीटियां और किलकारियां भर के कर रहे थे और वह शान से अपने दर्शकों को देखता हुआ इधर से उधर पिंजरे में टहल रहा था। लड़कों की ख़ुशी जायज़ थी।
लेकिन लड़कियों का शरमाना और मुंह छिपा कर हंसना मेरी समझ में बिलकुल नहीं आया। क्या वे शेर से डर रही थीं? क्या जंगल का राजा उन्हें उत्साह-उल्लास से नहीं भर रहा था? आखिर क्या बात थी?
[... जारी ]
No comments:
Post a Comment