एक शक्तिशाली राजा के दरबार में एक युवक चला आया। युवक आकर्षक, बुद्धिमान और गंभीर था। राजा ने मन ही मन सोचा कि ऐसे प्रतिभाशाली युवकों को तो राजदरबार में ऊंचे ओहदे पर होना चाहिए। राजा ने युवक की परीक्षा लेने की ठानी , ताकि सफल होने पर उसे रुतबेदार आसन दिया जा सके। राजा ने युवक को अपने राज्य के एक सूबे में भेजते हुए कहा-"नौजवान, अपनी शक्ति का प्रदर्शन करो, जाओ, जितने शेर-चीते-हाथी-ऊँट पकड़ कर ला सकते हो, लाओ।"
युवक राजा का मंतव्य भाँप कर अपने अभियान पर निकल पड़ा। युवक ने मचान बाँधा, और शेरों को पकड़ने की कोशिश करने लगा। जी तोड़ पसीना बहाने के बाद भी युवक एक भी शेर नहीं पकड़ सका।
उसने हिम्मत न हारी, सोचा,शेर न सही, वह घोड़े-हाथियों का एक बड़ा झुण्ड ही पकड़ कर राजा की सेवा में पेश करे। किन्तु लाख कोशिशों के बाद भी वह ऐसा झुण्ड नहीं पकड़ सका।
अपने पुरुषार्थ को भाग्य भरोसे छोड़ना उसे गवारा न था, उसने सोचा, छोटे-छोटे मृग-हरिण ही हाथ में आ जाएँ तो उनका एक जत्था लेकर राजा के दरबार में पेश करूँ।लेकिन दिनों का फेर ऐसा कि मृग भी सम्मानजनक संख्या में जुटा पाना संभव न हो सका।
लेकिन कहते हैं कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। आखिर बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा ,और युवक को वन में अठखेलियाँ करते चंद खरगोश मिल गए। युवक ने एक पल भी गंवाए बिना उन्हें पिंजरे में किया और उन्हें साथ में लेकर राज-दरबार का रुख किया।
राजा ने युवक को देखते ही उसकी हौसला-अफ़ज़ाई की-"शाबाश, जब ये मिल गए हैं तो कभी इन्हें खाने वाले वनराज भी मिलेंगे।"
युवक राजा का मंतव्य भाँप कर अपने अभियान पर निकल पड़ा। युवक ने मचान बाँधा, और शेरों को पकड़ने की कोशिश करने लगा। जी तोड़ पसीना बहाने के बाद भी युवक एक भी शेर नहीं पकड़ सका।
उसने हिम्मत न हारी, सोचा,शेर न सही, वह घोड़े-हाथियों का एक बड़ा झुण्ड ही पकड़ कर राजा की सेवा में पेश करे। किन्तु लाख कोशिशों के बाद भी वह ऐसा झुण्ड नहीं पकड़ सका।
अपने पुरुषार्थ को भाग्य भरोसे छोड़ना उसे गवारा न था, उसने सोचा, छोटे-छोटे मृग-हरिण ही हाथ में आ जाएँ तो उनका एक जत्था लेकर राजा के दरबार में पेश करूँ।लेकिन दिनों का फेर ऐसा कि मृग भी सम्मानजनक संख्या में जुटा पाना संभव न हो सका।
लेकिन कहते हैं कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। आखिर बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा ,और युवक को वन में अठखेलियाँ करते चंद खरगोश मिल गए। युवक ने एक पल भी गंवाए बिना उन्हें पिंजरे में किया और उन्हें साथ में लेकर राज-दरबार का रुख किया।
राजा ने युवक को देखते ही उसकी हौसला-अफ़ज़ाई की-"शाबाश, जब ये मिल गए हैं तो कभी इन्हें खाने वाले वनराज भी मिलेंगे।"
Dhanyawad!
ReplyDeleteसही में परिश्रम वह भी निरंतर परिश्रम फलदायी अवश्य होता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेरक बोध कथा ..
ReplyDeleteprernadayak aalekh..sunder bahut
ReplyDeleteAap teenon ka aabhaar!
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