क्या आप जानते हैं कि इस समय देश का सबसे बड़ा राज्य कौन सा है? ठीक पहचाना, राजस्थान !
एक समय था,जब हर जगह यूपी-बिहार की बात ही होती थी। नायिका का झुमका तो बरेली में गिरता ही था, नायक का दिल भी लखनऊ शहर की फ़िरदौस पर ही आता था, हेमाजी तो आगरा से घाघरा मंगवाते-मंगवाते मथुरा की सांसद ही हो गयीं। नायिका कहती थी कि मैं पटने से आई, नार मैं 'पटने' वाली हूँ। यहाँ तक कि कर्णाटक की शिल्पा भी यूपी-बिहार लूटने ही निकलती थीं।
लेकिन जबसे उत्तर प्रदेश ने 'उत्तराखंड' दिया,बिहार ने झारखण्ड दिया और मध्य प्रदेश ने छत्तीसगढ़, तब से नक्शानवीसों की तूलिका ने राजस्थान के नक़्शे पर आँखें टिका दीं। यह देश का सबसे बड़ा राज्य बन गया। यही राजस्थान इस समय एक विशेष हलचल से गुज़र रहा है। ये हलचल राजस्थान में इन दिनों राजस्थानी भाषा को संविधान में मान्यता दिलाने को लेकर उठ रही है। अभी तो आलम ये है कि सरकारी रिकार्ड में कामकाज की भाषा से लेकर प्रदेश की राजभाषा के रूप में हिंदी ही दर्ज है। लेकिन देश के किसी भी हिस्से में आप राजस्थान के मूल निवासियों को राजस्थानी भाषा ही बोलते सुन सकते हैं चाहे उन्हें वहां रहते हुए कितने भी साल गुज़र गए हों। जो लोग राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग करते हैं उनका मुख्य तर्क ये है-
जब पंजाब में पंजाबी, बंगाल में बंगाली,गुजरात में गुजराती या तमिलनाडु में तमिल भाषा को मान्यता है तो राजस्थान में राजस्थानी को क्यों नहीं?
यहाँ इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश,हरियाणा,हिमाचल प्रदेश में भी वहां की भाषाओँ- ब्रज, अवधी,भोजपुरी,गढ़वाली,कुमायूँनी,कौरवी, मैथिली,बुंदेलखंडी आदि के होते हुए राजभाषा के रूप में हिंदी को ही मान्यता दी गयी है।[जारी]
एक समय था,जब हर जगह यूपी-बिहार की बात ही होती थी। नायिका का झुमका तो बरेली में गिरता ही था, नायक का दिल भी लखनऊ शहर की फ़िरदौस पर ही आता था, हेमाजी तो आगरा से घाघरा मंगवाते-मंगवाते मथुरा की सांसद ही हो गयीं। नायिका कहती थी कि मैं पटने से आई, नार मैं 'पटने' वाली हूँ। यहाँ तक कि कर्णाटक की शिल्पा भी यूपी-बिहार लूटने ही निकलती थीं।
लेकिन जबसे उत्तर प्रदेश ने 'उत्तराखंड' दिया,बिहार ने झारखण्ड दिया और मध्य प्रदेश ने छत्तीसगढ़, तब से नक्शानवीसों की तूलिका ने राजस्थान के नक़्शे पर आँखें टिका दीं। यह देश का सबसे बड़ा राज्य बन गया। यही राजस्थान इस समय एक विशेष हलचल से गुज़र रहा है। ये हलचल राजस्थान में इन दिनों राजस्थानी भाषा को संविधान में मान्यता दिलाने को लेकर उठ रही है। अभी तो आलम ये है कि सरकारी रिकार्ड में कामकाज की भाषा से लेकर प्रदेश की राजभाषा के रूप में हिंदी ही दर्ज है। लेकिन देश के किसी भी हिस्से में आप राजस्थान के मूल निवासियों को राजस्थानी भाषा ही बोलते सुन सकते हैं चाहे उन्हें वहां रहते हुए कितने भी साल गुज़र गए हों। जो लोग राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग करते हैं उनका मुख्य तर्क ये है-
जब पंजाब में पंजाबी, बंगाल में बंगाली,गुजरात में गुजराती या तमिलनाडु में तमिल भाषा को मान्यता है तो राजस्थान में राजस्थानी को क्यों नहीं?
यहाँ इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश,हरियाणा,हिमाचल प्रदेश में भी वहां की भाषाओँ- ब्रज, अवधी,भोजपुरी,गढ़वाली,कुमायूँनी,कौरवी, मैथिली,बुंदेलखंडी आदि के होते हुए राजभाषा के रूप में हिंदी को ही मान्यता दी गयी है।[जारी]
आखिर आधिकारिक रूप से तो कामकाज हिन्दी में ही हो सकता है। जो राजस्थानी भाषा को सरकारी भाषा बनाने की सोच रहे हैं, उन्हें यह सोचना चाहिए कि लगाव,संस्कृति और प्रेम के रूप में हमें क्षेत्रीय भाषा को सरकारी बनाने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए। भाषाओं से सच्चा लगाव और उनकी अपेक्षित समृदि्ध के साहित्य के माध्यम से ज्यादा-से-ज्यादा हो सकती है। ना सही सरकारी साहित्यिक रूप में तो राजस्थानियों को राजस्थानी का विकास अवश्य करना चाहिए। और हिन्दी से बैर क्यों। लोगों को फ्लो चार्ट बना कर समझाया जाना चाहिए कि संस्कृत-हिन्दी-राजस्थानी-इत्यादि। तो झगड़ा काहे का।
ReplyDeleteAapki baat bahut suljhi hui aur sarthak hai.Dhanyawad!
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