Friday, December 5, 2014

जिसका काम उसी को साजे

ये बहुत पुरानी कहावत है।  इसका मतलब है कि जो जिस काम का अभ्यस्त होता है, वही उसे सलीके से कर पाता है।
हमारे देश में भोजन पकाने का काम महिलाओं का माना जाता "था"[है नहीं कह रहा] वे बरसों-बरस घर-घर खाना पकाती और आठ-दस लोगों की गृहस्थी को खिलाती रहीं, तो न किसी का ध्यान गया, और न ही किसी ने संजीदगी से उनका नोटिस ही लिया।  लोग मान बैठे कि ये तो उनका काम ही है, करेंगी।
इसी तरह गाली देना पुरुषों का काम रहा।  पुरुष चाहे पढ़े-लिखे हों या अनपढ़, धड़ल्ले से गालियाँ देते रहे।  कभी किसी ने पलट कर किसी से ये नहीं पूछा कि  भाई, ये क्या कह रहे हो? लोग माने बैठे रहे कि जैसे नल से पानी निकले, चूल्हे से आग और साबुन से झाग, वैसे ही पुरुषों के मुंह से गालियाँ निकलती ही हैं।
लेकिन फिर ज़माना बदल गया।  जब महिलाओं की जगह पुरुषों को भी रोटी बनानी पड़ी, तो रसोइयां तीन स्टार,चार स्टार,पांच स्टार होने लगीं। आखिर मर्द धुँआते चौके में मिट्टी के चूल्हे पर थोड़े ही रोटी थोपते?
ठीक वैसे ही जब महिलाओं ने गाली देना [बकना कहने में ज़बान लड़खड़ाती है] शुरू किया, तो आसमान टूट पड़ा।  संसद रुक गयी।  प्रलय आ गयी, भला अब देश-दुनिया कैसे चले ? एक औरत ने गाली दे दी!और एक ने ही नहीं, दो-दो ने! एक देश की मंत्री तो दूसरी राज्य की मुख्यमंत्री!     

4 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति

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  2. रामजादों में हरामजादों का डोज............शब्‍द के हेरफेर को गाली क्‍यों मान लिया गया, इस विषय पर शोध करेंगे।

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  3. Aapki baat sahi hai, kintu prayh gaali un shabdon ko bhi maana jata hai jinhen sunkar saamne vaala krodhit ho jaaye.Varna gaaliyon ke shabdik arth dekhenge to hamaare vividh bhaashi desh me alag-alag hain. Dhanyawad!

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