कुछ लोग जानना चाहते हैं कि "पहले लेखकीय सपने"की तलाश से मुझे क्या मिलेगा? अर्थात इस बात से मुझे क्या फर्क पड़ेगा कि कोई सपने बदलते-बदलते लेखक बन गया है, या वह पैदा ही लेखक बनने के लिए हुआ था?
बताता हूँ-
जो लोग[लेखक]परिस्थिति, असफलताओं,संयोगों के चलते लेखक बन जाते हैं, उनके लेखन में ईर्ष्या,अवसाद,बदला,पलायन,आक्रामकता,समर्पण आदि के तत्व आ जाते हैं जो उनके पात्रों,विचारों और स्थितियों को ताउम्र प्रभावित करते हैं। जबकि शुद्ध लेखकीय जीवनारम्भ करने वाली कलम सिर्फ वही कहती है जो कहने के लिए जन्मती है।वह आसानी से वाद-विचार-वर्चस्व के शिकंजे में नहीं फँसती।
एक पाठक के रूप में किसी ऐसे रचनाकार की गंध पाना और उसका समग्र पढ़ना या फिर ऐसे मकसद के राही को समय रहते पहचानना और उसकी रचना-प्रक्रिया को बनते देखना,यही मकसद है!
बताता हूँ-
जो लोग[लेखक]परिस्थिति, असफलताओं,संयोगों के चलते लेखक बन जाते हैं, उनके लेखन में ईर्ष्या,अवसाद,बदला,पलायन,आक्रामकता,समर्पण आदि के तत्व आ जाते हैं जो उनके पात्रों,विचारों और स्थितियों को ताउम्र प्रभावित करते हैं। जबकि शुद्ध लेखकीय जीवनारम्भ करने वाली कलम सिर्फ वही कहती है जो कहने के लिए जन्मती है।वह आसानी से वाद-विचार-वर्चस्व के शिकंजे में नहीं फँसती।
एक पाठक के रूप में किसी ऐसे रचनाकार की गंध पाना और उसका समग्र पढ़ना या फिर ऐसे मकसद के राही को समय रहते पहचानना और उसकी रचना-प्रक्रिया को बनते देखना,यही मकसद है!
बहुत बढ़िया है। पर अधिकांश परिस्थितियां ही जब विद्रूप हों, तो उनको संगत कैसे लिखा जा सकता है।
ReplyDeleteUnhe vaisa hi likha jaye, jaisee ve hain, kewal poorvagrah chhode jaayen. Dhanyawad!
ReplyDelete