Monday, April 11, 2016

सस्ता पड़ता है सितारों का गुच्छा !

फ़िल्में और चाट कोई एक चीज़ नहीं है। ये बात अलग है कि दोनों में समानताएं भी कम नहीं हैं।
एक प्लेट चाट में एक चम्मच नमक और एक चम्मच मिर्च स्वाद का जबरदस्त तड़का लगा देते हैं। ठीक वैसे ही फिल्म में एक हीरो और एक हीरोइन पूरी कहानी को चटपटा बना देते हैं।
लेकिन ठहरिए,कहीं चाट की प्लेट में तीन चम्मच नमक-मिर्च मत डालियेगा, हाँ फिल्म में तीन हीरो या तीन हीरोइनें हो सकते हैं।
इन बहु-सितारा फिल्मों को कहते हैं- मल्टीस्टारर !
मल्टीस्टारर फिल्मों के कई लाभ हैं-
१. आजकल बड़े सितारों के पास व्यस्तता के कारण कई-कई महीनों या सालों तक डेट्स उपलब्ध नहीं होतीं।  ऐसे में यदि फिल्म में कई स्टार्स हैं तो काम रुकता नहीं है और शूटिंग चलती रहती है।
२. यदि किसी वजह से फिल्म नहीं चली तो विफलता का ठीकरा फोड़ने के लिए आपको कई सिर मिल जाते हैं। ३.आजकल अधिकांश सितारों के पार्ट टाइम रोज़गार भी होते हैं, जिनमें फिल्म निर्माण से जुड़ी सुविधाएँ भी होती हैं। जितने सितारे आपके साथ, उतनी ही रियायती सुविधाएँ भी।
४. भीड़भाड़ वाली स्टार कास्ट में सितारे मेहनताना भी अपेक्षाकृत कम लेते हैं।
हाँ,ज़्यादा सितारों के होने के सिर्फ लाभ ही नहीं हैं, नुकसान भी हैं। लेकिन घाटे की बात हम क्यों करें?
महत्वपूर्ण ये है कि आप फिल्म में बहुत से स्टार्स ले रहे हैं, या जिन्हें आपने लिया था, वे अब स्टार बन गए।
"मदर इंडिया" के समय नरगिस, राजकुमार,सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार सितारे नहीं थे, बल्कि वे फिल्म की रिलीज़ के साथ ही सितारे बने। "वक़्त" के समय राजकुमार और सुनीलदत्त 'मदर इंडिया' से, साधना 'मेरे मेहबूब' से, 'शर्मिला टैगोर' कश्मीर की कली से, और शशि कपूर 'जब-जब फूल खिले'आरम्भ हो जाने के साथ स्टार का दर्ज़ा पा चुके थे।  "कभी ख़ुशी कभी ग़म" या "शोले" ऐतिहासिक मल्टीस्टारर रही हैं।                   

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