Thursday, January 23, 2014

क्या आपके पास कोई सुझाव है?

मैं जब भी अपने देश की बुराइयों के बारे में सोचता हूँ, तो मेरा ध्यान इस बात पर भी जाता है कि यहाँ लोग थूकते बहुत हैं.शहरों में तो आलम यह है कि सड़कें और गलियां इस घिनौने चिपचिपेपन से बजबजाती ही रहती हैं.गाँव भी इससे अछूते नहीं हैं, बस, वहाँ लोग कम और खाली जगह अपेक्षाकृत ज्यादा होने के कारण यह गंदगी छितराई हुई दिखती है.युवा लोगों का हाल यह है कि आप किसी को भी सड़क पर चलते हुए देखिये- वह बीस-पच्चीस कदम चलते ही थूक देगा.
कई बार बीमारी या वृद्धावस्था के चलते कोई ऐसा करता है तो बात सहन हो जाती है, पर यदि कोई अच्छा-भला सेहतमंद सड़क पर थूकता चले तो घुटन होती है.और यदि मुंह में गुटका या पान रखकर कोई उगलता चलता है तो ऐसा लगता है कि लोग बुरी आदत खुद खरीद कर लाये हों.
यदि मज़बूरी में थूकना ही हो, तो लोग सार्वजनिक स्थानों पर बने उगालदानों का प्रयोग नहीं करते, बल्कि बिना देखे-सोचे कहीं भी गंदगी कर देते हैं.शायद यही कारण है कि प्रशासक उगालदानों को बनाने या रखवाने में भी कोताही बरतते हैं.या शायद उनकी कोताही के कारण ही लोगों में ऐसी आदत पड़ती है.
इस दुष्चक्र में एक अच्छी बात यह है कि महिलायें पुरुषों की तुलना में इस बुराई से कोसों दूर हैं, शायद वे इस बात का कुप्रभाव अच्छी तरह समझती हैं, क्योंकि आमतौर पर घर को साफ़ रखने की  ज़िम्मेदारी उन्हीं की होती है.यदि आपके पास लोगों को इस आदत से बचाने का कोई नुस्खा है तो बताइये, और यदि नहीं है तो तलाश कीजिये.            

2 comments:

  1. जहां जाइए प्रशासकों के डस्‍टबीन भी भरे रहते हैं। बल्कि सफाईकर्मचारी उन डस्‍टबीनों को साफ करते समय मां-बहन की गाल और देते हैं। क्‍या करेंगे।

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  2. Aapki baat sahi hai, koi nidaan mile to baat bane.Aabhar!

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