मध्य प्रदेश में एक थानेदार ने अनूठा न्याय किया.
जब एक ही गाय पर दो युवकों ने अपनी दावेदारी जताई, तो मामला पेचीदा हो गया.
एक ने कहा कि गाय मेरी है, और ये उसे चुरा ले गया. दूसरा कह रहा था कि यह मेरी ही है, घर वापस आ गई.
थानेदार ने पहले १५ दिन के लिए उसे गाय को अपने ही घर बांधे रखने के लिए कहा.फिर १५ दिन बाद गाय को जंगल में छोड़ दिया, और गाय पर नज़र रखी.
१५ दिन बाद गाय स्वतः अपने पुराने मालिक के घर लौट आई.थानेदार ने उसी को गाय का असली मालिक घोषित कर दिया.
एक समय था कि हमारे देश में न्याय इसी तरह किया जाता था.
न्याय का यह सलीका आज हमें इसलिए अनूठा लगता है, क्योंकि अब न्याय इस तरह नहीं होता. अबतो फैसले के लिए गांधीजी को बीच में लाया जाता है. दोनों दावेदार फैसला करने वाले की हथेलियों में गांधीजी तसवीर रखते हैं, फिर ये तसवीरें गिनी जाती हैं. जिधर की ओर गांधीजी ज्य़ादा हुए, गाय उसकी ही होती है.हाँ, यदि किसी के पास गांधीजी की तसवीर न हो, तो फैसला गांधीजी की लाठी से होता है.
यकीन मानिये, तसवीरें रखने वाले "आम आदमी" ही होते हैं.
जब एक ही गाय पर दो युवकों ने अपनी दावेदारी जताई, तो मामला पेचीदा हो गया.
एक ने कहा कि गाय मेरी है, और ये उसे चुरा ले गया. दूसरा कह रहा था कि यह मेरी ही है, घर वापस आ गई.
थानेदार ने पहले १५ दिन के लिए उसे गाय को अपने ही घर बांधे रखने के लिए कहा.फिर १५ दिन बाद गाय को जंगल में छोड़ दिया, और गाय पर नज़र रखी.
१५ दिन बाद गाय स्वतः अपने पुराने मालिक के घर लौट आई.थानेदार ने उसी को गाय का असली मालिक घोषित कर दिया.
एक समय था कि हमारे देश में न्याय इसी तरह किया जाता था.
न्याय का यह सलीका आज हमें इसलिए अनूठा लगता है, क्योंकि अब न्याय इस तरह नहीं होता. अबतो फैसले के लिए गांधीजी को बीच में लाया जाता है. दोनों दावेदार फैसला करने वाले की हथेलियों में गांधीजी तसवीर रखते हैं, फिर ये तसवीरें गिनी जाती हैं. जिधर की ओर गांधीजी ज्य़ादा हुए, गाय उसकी ही होती है.हाँ, यदि किसी के पास गांधीजी की तसवीर न हो, तो फैसला गांधीजी की लाठी से होता है.
यकीन मानिये, तसवीरें रखने वाले "आम आदमी" ही होते हैं.
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