मणिका मोहिनी जी के माध्यम से यह जानकारी मिली कि इस साल [२०१४] का कैलेण्डर ठीक वही है जो १९४७ का था।
यदि तारीख और तवारीख़ में कोई रिश्ता है तो इस साल से बहुत उम्मीदें हैं। हमारी बेड़ियां टूटने की आस बलवती है, आज़ादी बरसने का मौसम है, हमारी उम्मीद-दंडिका पर अपना झंडा फहराने के दिन दोहराए जाने की ख्वाहिशें हैं। अपने पैरों पर खड़े होने ताकत की याचना फ़िज़ा में तैर रही है।
लेकिन "कलेंडरी करामात" से कई खौफ़ भी तारी हैं। देश टूटने के दिन भी यही थे, भाइयों के रक्तरंजित मनमुटाव के लम्हे भी यही घड़ी लाई थी। आज़ादी के लिए लड़ने वालों को धता बता कर पीछे धकेलने और कुर्सियां हथिया लेने के मंसूबे भी इन्हीं दिनों में पनपे थे।
खैर, अपनी उम्मीदों को अपनी आशंकाओं से लड़ा कर हम तो फिलहाल तमाशा देखें। जो होगा सो ठीक होगा। एक नए साल में अच्छा सोचने, अच्छा करने, अच्छा पाने के लिए आप सभी को स्वागत भरी शुभकामनायें!
यदि तारीख और तवारीख़ में कोई रिश्ता है तो इस साल से बहुत उम्मीदें हैं। हमारी बेड़ियां टूटने की आस बलवती है, आज़ादी बरसने का मौसम है, हमारी उम्मीद-दंडिका पर अपना झंडा फहराने के दिन दोहराए जाने की ख्वाहिशें हैं। अपने पैरों पर खड़े होने ताकत की याचना फ़िज़ा में तैर रही है।
लेकिन "कलेंडरी करामात" से कई खौफ़ भी तारी हैं। देश टूटने के दिन भी यही थे, भाइयों के रक्तरंजित मनमुटाव के लम्हे भी यही घड़ी लाई थी। आज़ादी के लिए लड़ने वालों को धता बता कर पीछे धकेलने और कुर्सियां हथिया लेने के मंसूबे भी इन्हीं दिनों में पनपे थे।
खैर, अपनी उम्मीदों को अपनी आशंकाओं से लड़ा कर हम तो फिलहाल तमाशा देखें। जो होगा सो ठीक होगा। एक नए साल में अच्छा सोचने, अच्छा करने, अच्छा पाने के लिए आप सभी को स्वागत भरी शुभकामनायें!
उम्मीदें तो हैं. आपको भी नए साल की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteDhanyawad.Ummeed hi hame kheenchti hai.
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