Tuesday, January 28, 2014

ये प्रयोग आपने किया है कभी?

इसे किसी छुट्टी के दिन इत्मीनान से कीजिये . यह भी ध्यान रखें, कि उस दिन मौसम भी साधारण सा ही हो, अर्थात बहुत सर्दी, बहुत गर्मी या बहुत बरसात आपके मानस को प्रभावित न कर रही हो .
आप किसी खुले स्थान-खिड़की,छत,गैराज आदि के किसी सुरक्षित कौने में तीन या पाँच छोटे बर्तन रख दें . ये काँच के गिलास, कप, अथवा मिट्टी के पात्र भी हो सकते हैं .
इन पात्रों में थोड़ा पानी भर दें .
अब आप किसी भी आसपास के एक ही वृक्ष से तीन या पाँच  साफ़-सुथरे, पूरे पत्ते तोड़ लें . यहाँ आपको थोड़ी सावधानी रखनी है . पत्ते एकसाथ न तोड़ें, बल्कि एक-एक करके तोड़ें . तोड़ते समय आपको अपने किसी घनिष्ठ मित्र को मन ही मन याद करना है . जेब में कुछ कागज़ की पर्चियां रखें, और जिस मित्र का स्मरण करके आपने जो पत्ता तोड़ा है,उस का नाम पेंसिल से कागज़ पर लिख कर वह पत्ता उसी कागज़ में लपेट लें. इस तरह आपके तीन या पाँच प्रिय मित्रों के नाम का एक-एक पत्ता आपके पास होगा .
अब इन पत्तों को कागज़ सहित पानी के उन बर्तनों में अलग-अलग डाल दें .
शाम अथवा रात [लगभग आठ घंटे के बाद] इन सभी बर्तनों से कागज़ में लिपटे पत्तों को निकालिये और उन्हें किसी अखबार या रुमाल पर फैला कर थोड़ी देर सूखने दीजिये [बस, दस मिनट पर्याप्त हैं]
अब पत्तों को गौर से देखिये . क्या वे सभी आपको बिलकुल एक से दिखाई देते हैं?
नहीं ! उनमें से कोई एक पत्ता आपको कुछ अधिक ताज़ा, गहरा और सुन्दर दिखाई देगा .
जिसका नाम उस सबसे अच्छे पत्ते के साथ वाबस्ता [लिखा हुआ] है, वही वस्तुतः आपका सबसे भरोसेमंद विश्वसनीय मित्र है .
आप सचमुच यह देख कर हैरान रह जायेंगे कि यह प्रयोग करने के बाद सबसे पहले आपका संपर्क उसी मित्र से होगा- चाहे, फोन से हो, चाहे फेसबुक से या फिर प्रत्यक्ष मिल कर !      

2 comments:

  1. क्‍या बात है। बहुत अच्‍छा। कर के देख लिया जाए।

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  2. Yadi parinam sateek aayen, to bataaiyega.

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