Friday, December 6, 2013

रत्न केवल चमकने वाले कीमती पत्थर नहीं हैं, वे भला-बुरा भी करते हैं

नेल्सन मंडेला नहीं रहे।  उनका जीवन भले ही सिमट गया, पर जीवन के अक्स सदियों नहीं सिमटने वाले।  वे "भारत-रत्न" थे।  उनके अवसान पर भारत में भी छह दिन का राजकीय शोक घोषित हो गया है।  वैसे उनका दुःख किसी घोषणा से वाबस्ता नहीं है, वे होगा ही।
ऐसी मिसालें तो दुनिया में बहुत हैं, जब लम्बी कैद ने कैदी का ह्रदय परिवर्तन कर उसे सुधार दिया, किन्तु ऐसी मिसाल करोड़ों में एक होती है जब किसी कैदी को मिली लम्बी कैद ने जेल के बाहर की दुनिया को सुधार दिया।
उनका दुःख दुनिया भर को शोक-संतप्त बना रहा है।
यहाँ तक कि भारत के उन चुनावी राज्यों में भी उनके दुःख ने असर डाला है, जहाँ पिछले दिनों चुनाव होकर चुके हैं। चुनावों के नतीजे तो अभी आठ तारीख को मतगणना के बाद आयेंगे, लेकिन सर्वेक्षणों, कयासों और अटकलों ने जो माहौल बना छोड़ा है उस पर भी नमी की  शबनमी बूँदें टपक गईं हैं।
जो हारते दिख रहे थे, उनके चेहरों पर उड़ती हवाइयों ने 'राजकीय शोक' का लिबास ओढ़ लिया है।  जो भविष्य-वाणियों को सुन-सुन कर ही झूमने लग गए थे, वे कुछ देर के लिए संजीदा हो गए हैं।
मंडेला का इतना प्रभाव तो होना ही था, आखिर वे "भारत रत्न" रहे हैं।
महान नेता को भाव भरी श्रद्धांजलि !     

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