राजतन्त्र में राजा होता था। और वह जब बूढ़ा या अशक्त हो जाए, तभी उसे यह चिंता सालने लगती थी कि मेरे बाद मेरे राज्य का क्या होगा? यहाँ कौन राज्य करेगा?जनता की जिम्मेदारी कौन उठाएगा ?
यदि राजा के कोई पुत्र न हो, या पुत्र राजा बनने के योग्य न हो, या फिर कई पुत्र होने के कारण उन में गद्दी के लिए संघर्ष होने की आशंका हो, तो राजा अपने जीते जी सतर्क हो जाता था। वह भविष्य का फैसला वर्तमान में ही करने की चेष्टा करता था, चाहे उसे किसी दूसरे का पुत्र दत्तक ही क्यों न लेना पड़े। बहरहाल राज्य को उत्तराधिकारी देना उसी का कर्तव्य माना जाता था।
जनतंत्र आया तो लगा कि अब ऐसी समस्या नहीं आएगी, क्योंकि जनतंत्र में तो हर एक व्यक्ति राजा होने की हैसियत रखता है। फिर राज्य में "जन" का तो कभी अभाव भी नहीं होता। लेकिन दिल्ली में फिर भी समस्या आ ही गई। राजा ने खेल-खेल में इतना खाया कि उसे कुर्सी से जाने का भी अंत तक नहीं पता चला। उसके दिमाग में ये सोच तो सपने में भी नहीं आया कि मेरे बाद मेरे राज्य का क्या होगा। जनतंत्र की सबसे बड़ी कमी यही है कि यहाँ कुर्सी से फिसल कर गिरते हुए को भी उम्मीद बरकरार रहती है।
राजतंत्र में राजा के हाथ में तलवार होती थी। जनतंत्र में खाली "हाथ" रह गया। और जब दुनिया जनतंत्र की अनदेखी करने लगी तो तंत्र के हाथ में झाड़ू आ गई। और फिर? फिर तो गज़ब हो गया। झाड़ू में हाथ आ गया। अगर मज़बूत हाथ हो, हाथ में फूलझाड़ू हो, तो सब कुछ साफसुथरा रहे। मगर जब हाथ अलग, फूल अलग और झाड़ू अलग... तब क्या हो? कोई तो राह निकालो ! सर जी सरकार बनालो ! कुर्सी का मान बचालो !
यदि राजा के कोई पुत्र न हो, या पुत्र राजा बनने के योग्य न हो, या फिर कई पुत्र होने के कारण उन में गद्दी के लिए संघर्ष होने की आशंका हो, तो राजा अपने जीते जी सतर्क हो जाता था। वह भविष्य का फैसला वर्तमान में ही करने की चेष्टा करता था, चाहे उसे किसी दूसरे का पुत्र दत्तक ही क्यों न लेना पड़े। बहरहाल राज्य को उत्तराधिकारी देना उसी का कर्तव्य माना जाता था।
जनतंत्र आया तो लगा कि अब ऐसी समस्या नहीं आएगी, क्योंकि जनतंत्र में तो हर एक व्यक्ति राजा होने की हैसियत रखता है। फिर राज्य में "जन" का तो कभी अभाव भी नहीं होता। लेकिन दिल्ली में फिर भी समस्या आ ही गई। राजा ने खेल-खेल में इतना खाया कि उसे कुर्सी से जाने का भी अंत तक नहीं पता चला। उसके दिमाग में ये सोच तो सपने में भी नहीं आया कि मेरे बाद मेरे राज्य का क्या होगा। जनतंत्र की सबसे बड़ी कमी यही है कि यहाँ कुर्सी से फिसल कर गिरते हुए को भी उम्मीद बरकरार रहती है।
राजतंत्र में राजा के हाथ में तलवार होती थी। जनतंत्र में खाली "हाथ" रह गया। और जब दुनिया जनतंत्र की अनदेखी करने लगी तो तंत्र के हाथ में झाड़ू आ गई। और फिर? फिर तो गज़ब हो गया। झाड़ू में हाथ आ गया। अगर मज़बूत हाथ हो, हाथ में फूलझाड़ू हो, तो सब कुछ साफसुथरा रहे। मगर जब हाथ अलग, फूल अलग और झाड़ू अलग... तब क्या हो? कोई तो राह निकालो ! सर जी सरकार बनालो ! कुर्सी का मान बचालो !
वाह, आपने बहुत रोचक तरीके से अपनी बात कही है
ReplyDeleteDhanyawad
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