ये किसी फिल्म का शीर्षक नहीं है. मैं सचमुच एक भूल का ही ज़िक्र कर रहा हूँ. किसी और की नहीं, खुद अपनी भूल.
मैं पिछले काफी दिनों से कुछ नहीं लिख सका. जब भी अपनी नई पोस्ट के बारे में सोचता तो यही लगता था कि कुछ है ही नहीं लिखने को, तो क्या लिखूं? लेकिन फिर बैठे-बैठे लगा कि यह मेरी भूल है. राजेंद्र यादव ने तो न लिखने के कारण बताने के लिए सात सौ पेज की किताब लिख दी थी.ऐसा कभी हो ही नहीं सकता कि लिखने का कोई कारण न हो.
पहला कारण तो यही है, मुझे इसलिए लिखना चाहिए था कि अब तक मैंने जो भी लिखा है, वह ज़रूरी नहीं कि किसी कारण से ही हो. मैंने अकारण भी बहुत सा लिख दिया है.तो अब मेरे पास कोई ऐसा कारण नहीं है कि अब न लिखूं।
दूसरे, मुझे इसलिए भी लिखना चाहिए था कि बहुत से कारण हैं लिखने के.गिनाऊँ?
१. मैं लिख कर ही तो बता सकता था कि मैं क्यों नहीं लिख पा रहा?
२. यदि मैं नहीं लिखता तो मुझे पढ़ना पड़ता। क्योंकि लिखे-पढ़े बिना बुद्धिजीवी बने रहना बड़ा मुश्किल है. और बुद्धिजीवी न होना तो और भी मुश्किल है. क्योंकि बुद्धिजीवी न होने पर तो हर बात पर टिप्पणी करनी पड़ती है. पढ़ने का मतलब है बुद्धिजीविता को और भी मुश्किल करना, क्योंकि आदमी दूसरों की सुनने में फ़िज़ूल वक्त गवाने से तो अपनी ही कुछ कहने का आनंद क्यों न ले?
अब मुझे लग रहा है कि कहीं मैं लिख कर तो कोई भूल नहीं कर रहा!
मैं पिछले काफी दिनों से कुछ नहीं लिख सका. जब भी अपनी नई पोस्ट के बारे में सोचता तो यही लगता था कि कुछ है ही नहीं लिखने को, तो क्या लिखूं? लेकिन फिर बैठे-बैठे लगा कि यह मेरी भूल है. राजेंद्र यादव ने तो न लिखने के कारण बताने के लिए सात सौ पेज की किताब लिख दी थी.ऐसा कभी हो ही नहीं सकता कि लिखने का कोई कारण न हो.
पहला कारण तो यही है, मुझे इसलिए लिखना चाहिए था कि अब तक मैंने जो भी लिखा है, वह ज़रूरी नहीं कि किसी कारण से ही हो. मैंने अकारण भी बहुत सा लिख दिया है.तो अब मेरे पास कोई ऐसा कारण नहीं है कि अब न लिखूं।
दूसरे, मुझे इसलिए भी लिखना चाहिए था कि बहुत से कारण हैं लिखने के.गिनाऊँ?
१. मैं लिख कर ही तो बता सकता था कि मैं क्यों नहीं लिख पा रहा?
२. यदि मैं नहीं लिखता तो मुझे पढ़ना पड़ता। क्योंकि लिखे-पढ़े बिना बुद्धिजीवी बने रहना बड़ा मुश्किल है. और बुद्धिजीवी न होना तो और भी मुश्किल है. क्योंकि बुद्धिजीवी न होने पर तो हर बात पर टिप्पणी करनी पड़ती है. पढ़ने का मतलब है बुद्धिजीविता को और भी मुश्किल करना, क्योंकि आदमी दूसरों की सुनने में फ़िज़ूल वक्त गवाने से तो अपनी ही कुछ कहने का आनंद क्यों न ले?
अब मुझे लग रहा है कि कहीं मैं लिख कर तो कोई भूल नहीं कर रहा!
अगली बार "क्या लिखूँ" की स्थिति आए तो कारणों का विश्लेषण करके विस्तार से बताइए ताकि अन्य लेखकगण भी लाभ उठा सकें। आप तो पोस्ट नहीं लिख सके, मुझे तो टिप्पणी लिखने तक में आलस आता रहा।
ReplyDeleteकारण हो न हो, लिखते रहिए
ReplyDeleteMujhe vishwas tha ki beehad men bhatak jaane ka naatak karne par kuchh purane dost zaroor madad ke liye aajayenge!
ReplyDeleteAap donon ka aabhar!
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