Saturday, August 3, 2013

छोटे राज्य

भारत का एक और राज्य विभाजन के लिए तैयार है. "तैयार" कहने का अर्थ यह नहीं है कि  सब कुछ सबके मन-माफिक हो रहा है. वैसे इतिहास गवाह है कि  कोई राज्य किसी शासक की महत्वाकांक्षा के लिए ही बड़ा बनता है. प्रतापी राजा-महाराजा निरंतर युद्धरत रह कर अपने राज्य को बढ़ाते रहे हैं. यह कभी किसी ने नहीं सुना कि  दो राज्य आपस में प्रेम से गले मिल कर एक हो गए हों. अलबत्ता यह ज़रूर होता रहा कि  बाहर या भीतर से जोर आजमा कर किसी ने राज्य को तोड़ दिया.
कहा यह भी जाता है कि  छोटे राज्यों से विकास ज्यादा होता है.  बड़े राज्यों में केन्द्रीकरण हो जाता है, और सारी शक्ति सुदूर राजधानियों के चक्कर काटने में ही खर्च होती है.अब जनसँख्या का घनत्व भी तो इतना हो गया है कि  छोटे राज्य ही "मैनेजेबल" हैं. आज़ादी के बाद से अब तक जब जनसँख्या, महंगाई, बेकारी सब बढ़ी हो तो राज्यों की संख्या क्यों पीछे रहे?जब जनसँख्या चौगुनी हो गई हो तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री, राजधानियां भी तो इसी अनुपात में बढ़ें।  लेकिन ऐसे में एक चुटकुला भी याद आ रहा है.
"पति ने जब नई-नवेली पत्नी के हाथ का बना खाना खाया तो तेज़ मिर्च के कारण उसकी आँखों में आंसू आ गए. पत्नी के पूछने पर पति ने दुल्हन का मन रखने के लिए कहा, कि  ये तो ख़ुशी के आंसू हैं, खाना तो बहुत अच्छा है.उत्साहित होकर पत्नी ने कहा-और दूं? तब पति बोला - नहीं-नहीं इससे ज्यादा ख़ुशी बर्दाश्त नहीं कर पाउँगा।"
तो छोटे राज्यों में होने वाले तेज़ विकास का मज़ा लूटने कल बुंदेलखंड, हरितखंड,मरुप्रदेश, मिथिलांचल, बोडोलैंड आदि-आदि न आ खड़े हों.    
    

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