वैसे तिथि के अनुसार श्रावण शुक्ल सप्तमी को आने के कारण इस वर्ष तुलसी जयंती १३ अगस्त को है, पर तुलसी मानस संस्थान, जयपुर ने इसे ९ अगस्त को ही मनाया था. उन्होंने इस कार्यक्रम में मुझे भी निमंत्रित किया था. संयोग से निमंत्रण के साथ एक पत्र भी भेजा कि वे इस अवसर पर मुझे सम्मानित भी करेंगे।
मेरा कई बार का यह सिद्ध अनुभव है, कि यदि अपनी प्रशंसा में कोई भी बात अपने मित्रों को पहले बतादूँ तो वह किसी न किसी वज़ह से पूरी नहीं हो पाती है. शायद इसे ही दुनियादारी में लोग "नज़र" लग जाना कहते हैं. मैं किसी अंधविश्वास में यकीन नहीं करता पर मन ही मन सोचता रहा कि मैं यह बात किसी को नहीं बताउंगा कि मेरा सम्मान हो रहा है.
संस्थान से आये पत्र में लिखा था कि अपने इष्ट-मित्रों को भी अपने साथ कार्यक्रम में लेकर आयें। मैं दुविधा में था कि बिना बताये मित्रों को कैसे साथ ले चलूँ। आखिर देर रात जब मुझे पूरा यकीन हो गया कि अब कोई बाधा नहीं आएगी, और कार्यक्रम हो ही जायेगा, मैंने अपने कुछ मित्रों को मोबाइल के ज़रिये एस एम एस करके कार्यक्रम की सूचना देदी और साथ में चलने का अनुरोध भी कर दिया।
कार्यक्रम में कुछ ही समय था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. एक-एक करके मित्रों के फ़ोन आने लगे, कि वे नहीं आ सकेंगे। कुछ-एक ने तो आशंका भी ज़ाहिर कर दी कि अब कार्यक्रम भी शायद ही हो. मैंने मन ही मन सोचा कि आज यदि मैं न जा सका तो मेरे मन में हमेशा के लिए अन्धविश्वास बनने से कोई नहीं रोक सकेगा कि यदि अपना कोई राज मित्रों पर पहले ज़ाहिर करदो तो सफलता संदिग्ध हो जाती है. मैंने घनघोर बारिश में भी अकेले ही जाने का पक्का इरादा कर लिया।
भोजन किया और निकलने के लिए तैयार होने लगा. जिनकी मानसिकता सकारात्मक और वैज्ञानिक हो वे कृपया सोच लें कि भोजन में ही ऐसा कुछ रहा होगा जिसने "रिएक्शन"किया और मेरा ऊपरी होंठ इस तरह सूज गया कि आईने में अपनी शक्ल देख कर खुद मुझे भी हंसी आने लगी. मैंने तो बहरहाल यही सोचा कि कोई काम जब तक पूरा हो न जाए, मित्रों को सूचना नहीं दूंगा।
मेरा कई बार का यह सिद्ध अनुभव है, कि यदि अपनी प्रशंसा में कोई भी बात अपने मित्रों को पहले बतादूँ तो वह किसी न किसी वज़ह से पूरी नहीं हो पाती है. शायद इसे ही दुनियादारी में लोग "नज़र" लग जाना कहते हैं. मैं किसी अंधविश्वास में यकीन नहीं करता पर मन ही मन सोचता रहा कि मैं यह बात किसी को नहीं बताउंगा कि मेरा सम्मान हो रहा है.
संस्थान से आये पत्र में लिखा था कि अपने इष्ट-मित्रों को भी अपने साथ कार्यक्रम में लेकर आयें। मैं दुविधा में था कि बिना बताये मित्रों को कैसे साथ ले चलूँ। आखिर देर रात जब मुझे पूरा यकीन हो गया कि अब कोई बाधा नहीं आएगी, और कार्यक्रम हो ही जायेगा, मैंने अपने कुछ मित्रों को मोबाइल के ज़रिये एस एम एस करके कार्यक्रम की सूचना देदी और साथ में चलने का अनुरोध भी कर दिया।
कार्यक्रम में कुछ ही समय था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. एक-एक करके मित्रों के फ़ोन आने लगे, कि वे नहीं आ सकेंगे। कुछ-एक ने तो आशंका भी ज़ाहिर कर दी कि अब कार्यक्रम भी शायद ही हो. मैंने मन ही मन सोचा कि आज यदि मैं न जा सका तो मेरे मन में हमेशा के लिए अन्धविश्वास बनने से कोई नहीं रोक सकेगा कि यदि अपना कोई राज मित्रों पर पहले ज़ाहिर करदो तो सफलता संदिग्ध हो जाती है. मैंने घनघोर बारिश में भी अकेले ही जाने का पक्का इरादा कर लिया।
भोजन किया और निकलने के लिए तैयार होने लगा. जिनकी मानसिकता सकारात्मक और वैज्ञानिक हो वे कृपया सोच लें कि भोजन में ही ऐसा कुछ रहा होगा जिसने "रिएक्शन"किया और मेरा ऊपरी होंठ इस तरह सूज गया कि आईने में अपनी शक्ल देख कर खुद मुझे भी हंसी आने लगी. मैंने तो बहरहाल यही सोचा कि कोई काम जब तक पूरा हो न जाए, मित्रों को सूचना नहीं दूंगा।
जब ऐसा हो तो कोई अंधविश्वासी कैसे न हो?
ReplyDeleteaandhiyan vishvason ko diga deti hain, par man ke kisi kaune se ab bhi yahi awaz aati hai ki andh-vishvasi nahin hona chahiye.
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