Sunday, September 1, 2013

नए मित्रों का इंतज़ार और उनसे मिलने की बेसब्र ख़ुशी

मुझे कुछ नए मित्र मिल जाने का विश्वास हो चला है. इसका यह कारण कतई नहीं है कि पुराने मित्रों की गर्मजोशी में कोई कमी आ गई है.इस विश्वास का तो बस इतना सा कारण है कि  मुझे पिछले दिनों मेरे एक मित्र और शुभचिंतक ने कुछ जानकारी दी है.
यह जानकारी इतनी सी है कि  पटना,नांदेड़, जालंधर और कोटा में मेरी कुछ रचनाओं पर अलग-अलग भाषाओं में कुछ लोग अनुवाद कार्य कर रहे हैं. वे जल्दी ही मुझे कुछ ऐसे पाठकों से जोड़ देंगे जिन्होंने मुझे अब तक नहीं पढ़ा है. इन विभिन्न भाषा-भाषी नए पाठकों में से कुछ तो ऐसे ज़रूर निकलेंगे, जो मुझे पढ़ कर पसंद करेंगे, और शायद मुझसे संपर्क भी करें।कुछ शायद पसंद न करें, और आलोचना के लिए मुझसे संपर्क करें। दोनों ही स्थितियों में मुझे कुछ नए मित्र मिल जायेंगे।
एक बात मुझे समझ में नहीं आई. इन विद्वान अनुवादकों में एक ऐसे भी हैं, जिन्होंने ख़लील ज़िब्रान के बहुत से साहित्य का अनुवाद किया है, और अब वे मेरी कहानियों पर काम कर रहे हैं. क्या ऐसा भी होता है कि  कोई अंगूर खाने के बाद बेर खाने लगे?
जो भी हो, मुझे तो इंतज़ार है अपने संभावित नए दोस्तों का. रंग-बिरंगे मानस दोस्त, जिनमें कोई सराहेगा, कोई जिरह करेगा, कोई लानतें भेजेगा।   

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