नीलाम्बर के गाँव के उसके घर से उस चिट्ठी का जवाब आ गया था जो उसने राशन कार्ड के बाबत अपने पिता को लिखी थी। पिता ने लिखा था कि यहाँ तो सभी का कार्ड है। लिखावट से ज़ाहिर था कि पिता ने चिट्ठी उसकी छोटी बहिन से लिखवाई थी। लिखा था कि यहाँ तो ग्यारह लोगों का कार्ड है।नीलाम्बर का भी।
घर में कुल सात प्राणी और ग्यारह आदमियों का कार्ड में नाम। चाचा के दो लड़कों का भी यहीं नाम लिखा है। ये भी लिखा था कि नीलाम्बर का नाम अभी तक काटा नहीं गया है। यहाँ सभी ज़्यादा लोगों का नाम लिखवाते हैं तभी जाकर राशन पूरा पड़ता है।
बहन से लिखवाई गयी उस चिट्ठी में ये भी लिखा था कि नीलाम्बर जब यहाँ कार्ड बनवाए तब भी सभी भाइयों के नाम भी उसमें लिखवा ले, तभी राशन-पानी पूरा पड़ेगा।
नीलाम्बर को चिट्ठी पढ़ कर हंसी आई। धरा तो ये पढ़ कर हँसते-हँसते लोटपोट ही हो गयी कि यहाँ किसी को पता नहीं है कि नीलाम्बर का नाम कार्ड में से कट कर शहर में कैसे जायेगा इसलिए वहां दूसरा बनवा लो।
-"क्या सचमुच तुम्हारे गाँव में कार्ड मुफ्त में बन जाता है? वो भी आँखें बंद करके?" धरा को हैरत हुई।
-"क्या पता? वहां थे, तब तक तो हमें पता ही नहीं थे ये सब झमेले। पिताजी ही सब देखते थे।" नीलाम्बर जैसे अपने-आप से बोला।
-"तुम एक बार अपने घर वालों को यहाँ लाना।"
नीलाम्बर धरा की इस बात से न जाने कहाँ खोकर रह गया। उसकी कल्पना में एक ऐसा उड़नखटोला तैरने लगा जो आसमान को चीरता हुआ, सफ़ेद-सफ़ेद बादलों को काटता, हिचकोले खाता हुआ चला आ रहा था और उसमें सवार थे उसकी अम्मा, बाबा,धन्नू,पीता,छोटा, मालू ...सब।
इन सब को न जाने कब से नहीं देखा था उसने। धनाम्बर,पीताम्बर,और सदाम्बर उसके छोटे भाई थे जो वहीँ गाँव में ही पढ़ते थे, माला उसकी बहन थी और एक चचेरी बहन भी वहीं गाँव में ही रहती थी।
धरा को अपने सवाल का जवाब काफी देर तक नहीं मिला, पर नीलाम्बर की आँखों में झाँक कर उसने जान लिया था कि नीलाम्बर धरा के सवाल का जवाब ही खुद अपने-आप को दे रहा है।
कैसा खो गया वह अपने घर को याद करके।
नीलाम्बर का दिल हुआ कि वह भी ठीक उसी तरह धरा से कहे कि कभी तुम भी मेरे साथ मेरे गाँव चलना।
पर ऐसा विचार आते ही नीलाम्बर मन ही मन झेंप गया। भला ऐसी बात वह धरा से कैसे कह सकता था।
धरा ने नीलाम्बर के घर से आई चिट्ठी के बारे में भक्तन माँ को भी बताया था।
-"माँ, अपने राशन कार्ड में बापू का नाम है क्या ?" धरा सहसा पूछ बैठी।
यह धरा को आज बैठे-बैठे अचानक क्या सूझा !
माँ स्तब्ध रह गयी। बेटी की ओर एकटक देखती रही।
[ जारी ]
घर में कुल सात प्राणी और ग्यारह आदमियों का कार्ड में नाम। चाचा के दो लड़कों का भी यहीं नाम लिखा है। ये भी लिखा था कि नीलाम्बर का नाम अभी तक काटा नहीं गया है। यहाँ सभी ज़्यादा लोगों का नाम लिखवाते हैं तभी जाकर राशन पूरा पड़ता है।
बहन से लिखवाई गयी उस चिट्ठी में ये भी लिखा था कि नीलाम्बर जब यहाँ कार्ड बनवाए तब भी सभी भाइयों के नाम भी उसमें लिखवा ले, तभी राशन-पानी पूरा पड़ेगा।
नीलाम्बर को चिट्ठी पढ़ कर हंसी आई। धरा तो ये पढ़ कर हँसते-हँसते लोटपोट ही हो गयी कि यहाँ किसी को पता नहीं है कि नीलाम्बर का नाम कार्ड में से कट कर शहर में कैसे जायेगा इसलिए वहां दूसरा बनवा लो।
-"क्या सचमुच तुम्हारे गाँव में कार्ड मुफ्त में बन जाता है? वो भी आँखें बंद करके?" धरा को हैरत हुई।
-"क्या पता? वहां थे, तब तक तो हमें पता ही नहीं थे ये सब झमेले। पिताजी ही सब देखते थे।" नीलाम्बर जैसे अपने-आप से बोला।
-"तुम एक बार अपने घर वालों को यहाँ लाना।"
नीलाम्बर धरा की इस बात से न जाने कहाँ खोकर रह गया। उसकी कल्पना में एक ऐसा उड़नखटोला तैरने लगा जो आसमान को चीरता हुआ, सफ़ेद-सफ़ेद बादलों को काटता, हिचकोले खाता हुआ चला आ रहा था और उसमें सवार थे उसकी अम्मा, बाबा,धन्नू,पीता,छोटा, मालू ...सब।
इन सब को न जाने कब से नहीं देखा था उसने। धनाम्बर,पीताम्बर,और सदाम्बर उसके छोटे भाई थे जो वहीँ गाँव में ही पढ़ते थे, माला उसकी बहन थी और एक चचेरी बहन भी वहीं गाँव में ही रहती थी।
धरा को अपने सवाल का जवाब काफी देर तक नहीं मिला, पर नीलाम्बर की आँखों में झाँक कर उसने जान लिया था कि नीलाम्बर धरा के सवाल का जवाब ही खुद अपने-आप को दे रहा है।
कैसा खो गया वह अपने घर को याद करके।
नीलाम्बर का दिल हुआ कि वह भी ठीक उसी तरह धरा से कहे कि कभी तुम भी मेरे साथ मेरे गाँव चलना।
पर ऐसा विचार आते ही नीलाम्बर मन ही मन झेंप गया। भला ऐसी बात वह धरा से कैसे कह सकता था।
धरा ने नीलाम्बर के घर से आई चिट्ठी के बारे में भक्तन माँ को भी बताया था।
-"माँ, अपने राशन कार्ड में बापू का नाम है क्या ?" धरा सहसा पूछ बैठी।
यह धरा को आज बैठे-बैठे अचानक क्या सूझा !
माँ स्तब्ध रह गयी। बेटी की ओर एकटक देखती रही।
[ जारी ]
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