धरा आकर यहाँ लेट ज़रूर गयी पर उसे नींद तो क्या, चैन तक न आया। उसे अच्छी तरह मालूम था कि रसोई में उसकी खटर-पटर बंद हो जाने से माँ को ज़रूर मायूसी हुई होगी।
माँ का ये चाय का समय था और धरा से तमाम नाराज़गी के बावजूद माँ बैठी यही सोच रही थी कि कपड़े बदल कर धरा चाय का पानी चढ़ाएगी।
आँखों पर मोड़ कर रखी हुई कोहनी की कोर से धरा ने ज़रा तिरछी आँखों से माँ की ओर देखा। उसे अकारण ही हंसी आ गयी। हंसी को होठों में ही घोटकर ज़ब्त करते हुए धरा ने पूछा-" चाय बनाऊँ माँ?"
इस से पहले कि माँ कुछ बोलें, उनकी आँखों में वही खास किस्म की चमक आ गयी, जिसे देखते ही धरा को अपनी बात का जवाब मिल गया।
पर प्रकटतः माँ बोलीं-"सो रही है तो सो जा, बाद में बना देना।"
धरा उठ कर रसोई में चली गयी और स्टोव जलाने लगी।
ऊपर तक भरे हुए गरम गिलास को अपनी धोती के पल्ले से पकड़ कर उठाते हुए माँ ने कहा-
-" और है क्या चाय? उसे भी दे देती ज़रा सी।"
-"अब बना लेगा अपने आप,उसे पीनी होगी तो।"
धरा ने जानबूझ कर लापरवाही से कहा और रसोई से एक हरी मिर्च के साथ दो रोटियाँ रख कर ले आई। चाय के साथ ही धरा रोटी खाने बैठ गयी, उसे अब तक भूख भी ज़ोरों की लग आई थी। माँ कुछ न बोली, चुपचाप चाय पीती रही।
-"क्यों री, कार्ड बन गया क्या उसका?" माँ ने हलक चाय से तृप्त होने के बाद जिज्ञासा उगली।
-"कार्ड क्या एक दिन में बन जाता है? आज तो फार्म भर कर दिया है। पंद्रह-बीस दिन लगेंगे, राशन कार्ड के दफ्तर से एक आदमी यहाँ देखने आएगा, तब जाकर बनेगा।" धरा बोली।
-"आदमी क्यों आएगा? आदमी को ही आना था तो इसे वहां क्यों बुलाया?" माँ ने जायज़ सी बात कही।
-"अरे कार्ड बनाने से पहले ठौर-ठिकाना देखने आते हैं, जिसने अर्ज़ी दी है वो यहाँ रहता भी है या नहीं, और कौन-कौन है साथ में? किस-किस का नाम जुड़ेगा कार्ड में, ये सब यहाँ तहकीकात करके ही तो कार्ड बनाएंगे।" धरा ने अब तक का अपना ज्ञान मानो सारा उलीच दिया।
उसे ज़रा झल्लाहट सी भी हुई कि कहाँ तो वापस लौटते ही माँ ने ये भी सीधे मुंह नहीं पूछा था कि जिस काम से वे लोग गए थे वह हो गया या नहीं, और अब माँ उसके कार्ड को लेकर इतनी चिंतित है कि उसका बस चले तो आज, अभी ही बनवा कर दिलवा दे कार्ड सरकार से।
नीलाम्बर का कार्ड बनने, न बनने की जो फ़िक्र दो दिन से माँ को थी वह उस समय तो उपेक्षा के किसी खोल में गुम हो गयी थी, जब उन्हें लौटने में ज़रा देर क्या हुई।
माँ का बेबात का गुस्सा धरा को फिर से याद आ गया। उसे लगा कि वह अकारण ही अपने को तनाव में जला रही थी। [ जारी ]
माँ का ये चाय का समय था और धरा से तमाम नाराज़गी के बावजूद माँ बैठी यही सोच रही थी कि कपड़े बदल कर धरा चाय का पानी चढ़ाएगी।
आँखों पर मोड़ कर रखी हुई कोहनी की कोर से धरा ने ज़रा तिरछी आँखों से माँ की ओर देखा। उसे अकारण ही हंसी आ गयी। हंसी को होठों में ही घोटकर ज़ब्त करते हुए धरा ने पूछा-" चाय बनाऊँ माँ?"
इस से पहले कि माँ कुछ बोलें, उनकी आँखों में वही खास किस्म की चमक आ गयी, जिसे देखते ही धरा को अपनी बात का जवाब मिल गया।
पर प्रकटतः माँ बोलीं-"सो रही है तो सो जा, बाद में बना देना।"
धरा उठ कर रसोई में चली गयी और स्टोव जलाने लगी।
ऊपर तक भरे हुए गरम गिलास को अपनी धोती के पल्ले से पकड़ कर उठाते हुए माँ ने कहा-
-" और है क्या चाय? उसे भी दे देती ज़रा सी।"
-"अब बना लेगा अपने आप,उसे पीनी होगी तो।"
धरा ने जानबूझ कर लापरवाही से कहा और रसोई से एक हरी मिर्च के साथ दो रोटियाँ रख कर ले आई। चाय के साथ ही धरा रोटी खाने बैठ गयी, उसे अब तक भूख भी ज़ोरों की लग आई थी। माँ कुछ न बोली, चुपचाप चाय पीती रही।
-"क्यों री, कार्ड बन गया क्या उसका?" माँ ने हलक चाय से तृप्त होने के बाद जिज्ञासा उगली।
-"कार्ड क्या एक दिन में बन जाता है? आज तो फार्म भर कर दिया है। पंद्रह-बीस दिन लगेंगे, राशन कार्ड के दफ्तर से एक आदमी यहाँ देखने आएगा, तब जाकर बनेगा।" धरा बोली।
-"आदमी क्यों आएगा? आदमी को ही आना था तो इसे वहां क्यों बुलाया?" माँ ने जायज़ सी बात कही।
-"अरे कार्ड बनाने से पहले ठौर-ठिकाना देखने आते हैं, जिसने अर्ज़ी दी है वो यहाँ रहता भी है या नहीं, और कौन-कौन है साथ में? किस-किस का नाम जुड़ेगा कार्ड में, ये सब यहाँ तहकीकात करके ही तो कार्ड बनाएंगे।" धरा ने अब तक का अपना ज्ञान मानो सारा उलीच दिया।
उसे ज़रा झल्लाहट सी भी हुई कि कहाँ तो वापस लौटते ही माँ ने ये भी सीधे मुंह नहीं पूछा था कि जिस काम से वे लोग गए थे वह हो गया या नहीं, और अब माँ उसके कार्ड को लेकर इतनी चिंतित है कि उसका बस चले तो आज, अभी ही बनवा कर दिलवा दे कार्ड सरकार से।
नीलाम्बर का कार्ड बनने, न बनने की जो फ़िक्र दो दिन से माँ को थी वह उस समय तो उपेक्षा के किसी खोल में गुम हो गयी थी, जब उन्हें लौटने में ज़रा देर क्या हुई।
माँ का बेबात का गुस्सा धरा को फिर से याद आ गया। उसे लगा कि वह अकारण ही अपने को तनाव में जला रही थी। [ जारी ]
No comments:
Post a Comment