Friday, January 30, 2015

अहिंसा की मौत ?

मृत्यु जीवन पर विराम है।  लेकिन जिस मौत से जीवन शुरू हो गया हो, वह मृत्यु नहीं हो सकती।  वह केवल महाप्रयाण है, केवल पारगमन।  
जीवन और मरण किसी के हाथ में नहीं है।  
अगर माचिस की तीली रगड़ खाकर जल उठे और राख हो जाए तो यह उस तीली की मृत्यु नहीं है। यह तो प्रकाश अथवा अग्नि के लिए वांछित सहज क्रिया है।  
यदि तीली अनंत काल तक सुरक्षित डिबिया में बंद में पड़ी रहे तो उसका बचे रहना शायद उसकी मौत है।  
अहिंसा का अर्थ है-प्रहारक, मारक,आतताई,विंध्वंसक दुरशक्तियों के विरुद्ध उन्हें भस्म कर देने वाली निस्सीम शांति से भरी सहज अवस्थिति।
अहिंसा की मौत नहीं हो सकती क्योंकि तथाकथित मृत्युकारक ये शक्तियां सीमित बल वाली हैं, जबकि अहिंसा अनंत बलशाली।  
आइये, अहिंसा का ध्यान करें, अहिंसा का मान करें।  हिंसा के मानमर्दन की यही स्वाभाविक प्रक्रिया है।        

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