जब हम किसी भी कोलाहल से गुजरते हैं तो हमें सुनाई देने वाली आवाज़ों में बहुत सी आवाजें पशु-पक्षियों की भी होती हैं. जंगल में विचरने वाले छोटे-बड़े जीव, घरेलू पालतू जानवर, हवा में उड़ने वाले कीट-पतंगे,अथवा सड़क पर घूमते आवारा पशु, हमसे तरह-तरह से कुछ न कुछ कहते जान पड़ते हैं. कभी वे खुश होकर अपनी कोई उपलब्धि बता रहे होते हैं, तो कभी दुःख में डूबे अपनी आपबीती कह रहे होते हैं, कभी साथियों की शिकायत कर रहे होते हैं, तो कभी खालिस शरारत के मूड में हमें सता रहे होते हैं.
कभी गौर से सुनिए, आपको लगेगा कि गली के कुत्ते आपको डांट रहे हैं. चिड़िया ने खिड़की पर आकर शिकायत की है कि आपने डस्टिंग करते समय उसके लाये तिनके तितर-बितर कर दिए. कभी ताँगे में जुता घोड़ा आपसे कहता है कि सामान ज़रा कम लेकर चला करो, पीठ अकड़ गई बोझ से.कभी दूर जंगल से आवाज़ आती है कि वाह, आज क्या शिकार मिला, पेट तृप्त हो गया.
क्या आप राज़ की एक बात जानते हैं?
प्राणियों के ये ज़ज्बात हमारे अवचेतन में स्थाई रूप से दर्ज हो जाते हैं. कालांतर में यही आवाजें हमारा "मूड" बनती हैं.
कभी गौर से सुनिए, आपको लगेगा कि गली के कुत्ते आपको डांट रहे हैं. चिड़िया ने खिड़की पर आकर शिकायत की है कि आपने डस्टिंग करते समय उसके लाये तिनके तितर-बितर कर दिए. कभी ताँगे में जुता घोड़ा आपसे कहता है कि सामान ज़रा कम लेकर चला करो, पीठ अकड़ गई बोझ से.कभी दूर जंगल से आवाज़ आती है कि वाह, आज क्या शिकार मिला, पेट तृप्त हो गया.
क्या आप राज़ की एक बात जानते हैं?
प्राणियों के ये ज़ज्बात हमारे अवचेतन में स्थाई रूप से दर्ज हो जाते हैं. कालांतर में यही आवाजें हमारा "मूड" बनती हैं.
ये बात मन में उतर गई !
ReplyDeleteDhanyawad
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