Thursday, July 11, 2013

एक अच्छी शाम

   किसी शाम को अच्छा या बुरा कहने की ज़रुरत नहीं होती। जाता सूरज भरसक सुहाने दृश्य देता ही है, बशर्ते बादल उसका रास्ता न रोकें। लेकिन कल की शाम सूरज और बादल ने खूबसूरत दृश्य देने में कोई कोताही नहीं की। वैसे भी ये एक विचार, मिलन और आत्मीयता की शाम थी।
मेरे उपन्यास "जल तू जलाल तू " का कल लोकार्पण था। बहुत सारे मित्रों, शुभचिंतकों, परिजनों और परिचितों को एक साथ देख कर बहुत अच्छा लगा। कुछ लोगों की बातें तो इतनी आकर्षक थीं कि  जिन्हें सुनने के लिए ही लिखने वालों का जन्म होता है। दूर-पास से जिनके ढेरों सन्देश मिले उन सबका शुक्रिया।
मैं सोच रहा था कि  यह कैसी अनोखी प्रक्रिया है कि  हम एक लेखनी के सहारे किसी के दिमाग के फर्श पर बिछायत करके आराम से बैठ जाते हैं, और फिर वह हमारी कहता है।
ये शाम इसलिए ही अच्छी नहीं थी कि  लोगों ने मीठी बात कही, बल्कि इसलिए भी अच्छी थी कि  लोग कहने-सुनने आये। वैसे भी शाम अच्छी होती ही है, क्योंकि ये दिनभर दफ्तरों और कार्यस्थलों में भिड़े रहे लोगों को वापस घर ले आती है, और दिनभर घरों में रहे लोगों को बाहर निकाल लाती है। फिर ये शाम उस रात की भूमिका भी तो बनाती है, जो ज़रूरी है सपने देखने के लिए।  

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