कुछदिन से सुस्त-रफ़्तार रही दिनचर्या पर न जाने किस ग्रह-नक्षत्र की छाया पड़ी कि अचानक बैठे-बैठे भारत के सात राज्यों की झलक एक दिन में ही देखने को मिली। बहुत थोड़ी सी देर में भी यह सब जान-सुन कर अच्छा लगा कि -
राजस्थान भी रेगिस्तान की छवि खोकर हरा-भरा होता जा रहा है।
हरियाणा में एक दिन लोहा और मिट्टी बराबर तुलेंगे।
दिल्ली के विमानतल पर गत-वर्ष कुल इतने यात्री आये,जितनी ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या है।
उत्तरप्रदेश पिता-पुत्र शासकों की परंपरा अब भी निभा रहा है।
बिहार अभी दुश्मन-दोस्तों की वजह से और चर्चा में रहेगा।
झारखण्ड में पेड़ अब भी गाते हैं गीत।
ओडिशा इस्पात को सुरों के लिए इस्तेमाल करता है।
शायद शीर्षक इस तरह होना चाहिए था-"सप्त-ऋषि मंडल ज़मीन से"
राजस्थान भी रेगिस्तान की छवि खोकर हरा-भरा होता जा रहा है।
हरियाणा में एक दिन लोहा और मिट्टी बराबर तुलेंगे।
दिल्ली के विमानतल पर गत-वर्ष कुल इतने यात्री आये,जितनी ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या है।
उत्तरप्रदेश पिता-पुत्र शासकों की परंपरा अब भी निभा रहा है।
बिहार अभी दुश्मन-दोस्तों की वजह से और चर्चा में रहेगा।
झारखण्ड में पेड़ अब भी गाते हैं गीत।
ओडिशा इस्पात को सुरों के लिए इस्तेमाल करता है।
शायद शीर्षक इस तरह होना चाहिए था-"सप्त-ऋषि मंडल ज़मीन से"
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