आपने साहित्य या फिल्मों में तो ऐसी हास्य स्थितियां देखी होंगी जब किसी मरणासन्न व्यक्ति को लेने यमदूत आये, और वे गफलत में किसी दूसरे को उठा ले गए। कभी-कभी हॉरर फिल्म के निर्माताओं ने भी ऐसे दृश्य दिखाए हैं जो हास्य या भय निर्मित करते हैं।
लेकिन आपको ये जान कर अचम्भा होगा कि किसी व्यक्ति को नींद के दौरान आने वाला संभावित सपना कभी-कभी वास्तव में किसी और की आँख में स्थलांतरित हो जाता है।
ऐसा होने के कई कारण हैं।
यदि किसी व्यक्ति ने जाने-अनजाने आपके बारे में लगातार बहुत देर तक सोचा हो, तो हो सकता है कि जो बातें स्वाभाविक नींद में आपके स्वप्न में आने वाली थीं,उनमें से कुछ छिटक कर उस व्यक्ति की आँखों में जगमगाने लगें जो आपके बारे में सोचता रहा है। यहाँ "सोच"बैट्री का काम करती है, और ये 'कॉन्फ्रेंसिंग' हो जाती है। ये क्रिया क्षणिक ही होती है, किन्तु स्पष्ट और याद रखने लायक़ हो सकती है।
दूसरा कारण ये भी हो सकता है कि यदि किसी दिन आप और कोई अन्य व्यक्ति बिलकुल समान परिस्थितियों [विशेष,जैसे दुर्घटना,डूबना, आदि ] से गुज़रे हों तो उसके स्वप्न-संकेत आपको भी कुदरतन सूचित हो सकते हैं।
आश्चर्य की बात ये है कि ऐसे व्यक्ति से आपकी दूरी की कोई सीमा नहीं है।
प्रायः दोनों ही स्थितियों में दूसरा व्यक्ति आपका रक्त- सम्बन्धी नहीं होगा।
लेकिन आपको ये जान कर अचम्भा होगा कि किसी व्यक्ति को नींद के दौरान आने वाला संभावित सपना कभी-कभी वास्तव में किसी और की आँख में स्थलांतरित हो जाता है।
ऐसा होने के कई कारण हैं।
यदि किसी व्यक्ति ने जाने-अनजाने आपके बारे में लगातार बहुत देर तक सोचा हो, तो हो सकता है कि जो बातें स्वाभाविक नींद में आपके स्वप्न में आने वाली थीं,उनमें से कुछ छिटक कर उस व्यक्ति की आँखों में जगमगाने लगें जो आपके बारे में सोचता रहा है। यहाँ "सोच"बैट्री का काम करती है, और ये 'कॉन्फ्रेंसिंग' हो जाती है। ये क्रिया क्षणिक ही होती है, किन्तु स्पष्ट और याद रखने लायक़ हो सकती है।
दूसरा कारण ये भी हो सकता है कि यदि किसी दिन आप और कोई अन्य व्यक्ति बिलकुल समान परिस्थितियों [विशेष,जैसे दुर्घटना,डूबना, आदि ] से गुज़रे हों तो उसके स्वप्न-संकेत आपको भी कुदरतन सूचित हो सकते हैं।
आश्चर्य की बात ये है कि ऐसे व्यक्ति से आपकी दूरी की कोई सीमा नहीं है।
प्रायः दोनों ही स्थितियों में दूसरा व्यक्ति आपका रक्त- सम्बन्धी नहीं होगा।
ये सच है। प्राय: ऐसा अनुभव करनेवाले मनोरोगी हो जाया करते हैं।
ReplyDeleteHamesha aisa nahin hota, kintu ho sakta hai.Manorogi hone ki aashanka tab adhik rahti hai jab is kshanik "jhalak" par zyada gambheerta ya aaveg se socha jaaye .
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