Sunday, September 8, 2013

अच्छा होता है करवट बदलना

एक लड़का सो रहा था. नींद में उसे सपने आने लगे. उसने देखा कि  वह सपने में अपने पिता को देख रहा है. कुछ ही देर में उसने देखा कि  उसके पिता अपने पिता से बातें कर रहे हैं. दो वरिष्ठ जनों को बातें करते देख उसने बीच में व्यवधान डालना उचित नहीं समझा, और वह चुपचाप उनकी बातें सुनता रहा. उसे सुनाई पड़ा कि  उसके दादा [पिता के पिता] अपने पुत्र को अपने पिता की तस्वीर दिखा रहे हैं, जिसमें पिता अपने पिता के साथ खड़े हैं. लड़के की रूचि धीरे-धीरे इस सपने में कम होती गई. उसे इतनी दूर के रिश्तेदारों के बारे में जानने की कोई जिज्ञासा नहीं थी.
लड़के ने नींद में कसमसा कर करवट बदल ली. लड़के ने करवट बदली थी, उसकी नींद उचाट नहीं हुई थी. अतः वह पूर्ववत सोता रहा. गहरी नींद में उसे फिर से सपना दिखने लगा. इस बार सपने में वह एक अजीबो-गरीब मंजर देखने लगा. उसने देखा कि  एक सुन्दर सी झील के किनारे हरी-भरी घास में एक सुन्दर सा बालक खेल रहा है. वह बालक की ओर  बढ़ा. उसने देखा कि  बालक के हाथों में एक मनमोहक खिलौना है. उससे रहा न गया. उसने छिप कर देखना चाहा कि बालक उस खिलौने का क्या करता है. क्या वह उसे तोड़ देगा, उसे झील के पानी में फेंक देगा या फिर उसे संभाल कर अपने पास रखेगा। उसने देखा कि  बालक ने खिलौने को जैसे ही ज़मीन पर रखा, वह खिलौना भी जीवित हो गया और किसी नवजात बालक की भाँति किलकारियां भरने लगा.
लड़के को सपने में आनंद आने लगा, और उसकी नींद इस प्रत्याशा में और गहरी हो गई कि  सपना न टूटे। उसे इस बात से कोई सरोकार नहीं था कि  सपने में दिखा बालक और बालक के हाथ का खिलौना उसके लिए कितना अजनबी या कितना नजदीकी है.    

2 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...