Saturday, June 29, 2013

गफ़लत और उत्तराखण्ड मन्दाकिनी जल विभीषिका

कोई गफ़लत कर दी जाए या हो जाए,तो उसकी वज़ह बताई जानी चाहिए। यह पोस्ट दो सप्ताह बाद आ रही है। मित्र और शुभचिंतक शायद इसकी वज़ह जानना चाहें। ये दिन एक ऐसे विवाह-समारोह में बीते जहां आयोजन-समिति में भी सम्बद्धता थी।
उत्तराखंड में हुए जल-प्लावन के बाद कई निर्दोष-निरीह-निस्वार्थ असहाय लोगों को कष्ट सहते देखा। मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि। जो बच तो गए पर अपने किसी परिजन को खो बैठे, उनके प्रति संवेदनाएं।
जो फंसे तो थे, पर बाद में सकुशल लौट आये, उन्हें मिले सबक के लिए बधाई।
ये लोग किसी टीवी चैनल के माध्यम से विमानतल,रेलवे-स्टेशन, बस-स्थानक या शरण शिविर से अपने  शिकायत,कृतज्ञता,या क्रोध का इज़हार कर रहे थे। इससे कुछ बातें तो उजागर होती ही हैं-
१. ये ईश्वर को नहीं, सरकार या प्रशासन को कोस रहे थे।
२. वरिष्ठ अधिकारियों, नेताओं की भांति भगवान भी वहां नहीं था।
३. हो सकता है, भगवान भी वहां हो और उसे इस भीड़ में से लोगों को अलग-अलग फल देना हो, इसलिए उसने यह रास्ता निकाला।
४. यदि संकट नहीं आता तो मंदिर में दर्शन करते समय ये लोग सरकार या "देश" के लिए भी कुछ मांगने वाले थे।
५. यदि ईश्वर ने कुछ लोगों का जीवन लेकर उन्हें फल दिया है,तो सरकार अब उन्हीं को मुआवज़ा देगी।
६. यदि इन सब बातों से ईश्वर का कोई सरोकार नहीं है तो क्या यह केवल साहसिक पर्यटन था?
७. संकट से निकल कर आये ये लोग अब अपनी-अपनी बस्ती में निरापद हैं।
[हाँ,विवाह-समारोह पुत्र का था]           

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