Friday, June 7, 2013

एक न एक खिलौना तो टूटेगा

खिलौने सब को प्यारे होते हैं, बच्चों को तो विशेष रूप से। कोई कभी नहीं चाहता कि  खिलौना टूटे। बच्चे तो इसलिए नहीं चाहते क्योंकि खिलौने उन्हें जान से भी ज्यादा प्यारे होते हैं, और बड़े इसलिए कि उन्हें बच्चे जान से ज्यादा प्यारे होते हैं, इसलिए वे बच्चों के खिलौने को भी बच्चों की तरह ही चाहते हैं। खिलौना टूट जाये तो बच्चों का दिल कैसे बहलेगा, और बच्चा रूठ जाये तो बड़ों का दिल कैसे बहलेगा।
लेकिन फिर भी खिलौने टूट जाते हैं। दरअसल खिलौने बनते ही टूटने के लिए हैं। क्योंकि खिलौने टूट कर भी बच्चों को कुछ न कुछ सिखा जाते हैं।
ऐसा ही एक खिलौना है क्रिकेट, जिससे पूरा देश खेलता है। बल्कि देश ही नहीं आधे से ज्यादा विश्व खेलता है। भारत ने आज क्रिकेट को इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है कि  अब जब मैदान पर कोई छक्का पड़ेगा तो देखने वाले यही सोचेंगे कि  यह इसने कलाई से मारा है या जेब से? जब कोई खिलाड़ी आउट होगा तो शंका होगी कि  इसकी ताकत चुक गई या इसने किश्त चुकाई है।
ऐसा न सोचने वाले केवल वही लोग होंगे जो अखबार नहीं पढ़ते या मीडिया की नहीं सुनते।
अगर ऐसा होता है तो अच्छी बात कहाँ है? आखिर मीडिया भी तो एक खिलौना ही है। वह टूटा, तो भी दुःख तो होगा ही। जान की आफत तो शिल्पा जैसी अभिनेत्रियों की भी है।अब न उनकी हँसी असली लगेगी न आंसू। तो एक खिलौना और टूटेगा,अभिनय, इससे भी तो दुनिया खेलती है।
इतने खिलौने टूटेंगे तो क्या सिखायेंगे?
यही कि  अति हर चीज़ की बुरी, चाहे खेल ही क्यों न हो! और ...धन इंसान को आसमान में उड़ना सिखाता है तो धूल में लोटना भी।    

4 comments:

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