Friday, February 20, 2015

साहित्यकारों के फ्लैप मैटर

एक गाँव में कहीं से घूमता हुआ एक फ़क़ीर आ पहुंचा। 'पड़ा रहेगा', 'किसी का क्या बिगड़ेगा', 'मांग-तांग कर पेट भर लेगा', सो किसी ने कुछ न कहा।
दो चार दिन बाद किसी मुसाफिर की निगाह पड़ी तो उसने देखा कि जिस गली में फ़क़ीर पड़ा रहता है, वो और गलियों से कुछ ज़्यादा साफ-सुथरी लग रही है। ऐसा लगा जैसे वहां रोज़ झाड़ू लगती हो।
कुछ दिन बाद उस गली के पेड़-पौधे कुछ ज़्यादा हरे-भरे नज़र आने लगे।  ऐसा लगता था मानो कोई पेड़ों की कांट -छांट कर उनमें खाद-पानी डाल जाता है। परिंदे भी वहां ज़्यादा चहचहाते,मवेशी वहां आराम करते, बच्चे वहीँ आकर खेलते।
लेकिन बुज़ुर्ग फ़क़ीर जल्दी ही एकदिन चल बसा।
अब लोगों का ध्यान इस बात पर गया, कि अरे, ये आखिर था कौन? कहाँ से आया था? क्या करता था?
लोगों ने इसकी खोज-खबर ली,और एक बोर्ड पर फ़क़ीर का नाम-गाँव-परिचय लिख कर यादगार के तौर पर गली में लगा दिया।
साथ ही गाँव-वालों ने तय किया कि सब लोग अपनी-अपनी गली की वैसे ही देख भाल करेंगे जैसे फ़क़ीर अपनी गली की किया करता था।
चंद दिनों में हर गली के नुक्कड़ पर चमचमाते बोर्ड लग गए जिन पर उस गली के मुखिया का रंगीन फोटो, नाम, पता, परिचय, प्रशस्ति आदि जगमगा रहा था।               

2 comments:

  1. चमक के लिए हर हाथ क बढ़ना, करना जरूरी है ना कि अपने फोटुएं लगाकर खोखला प्रचार करना।

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  2. Aapne sahi kaha, tatparya yahi hai ki aaj bina kuchh kiye log prachar chahte hain.

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