Sunday, February 15, 2015

कलाक्षेत्र में ज़ुनून

कला और मनोरंजन का क्षेत्र ऐसा है कि वहां हर दर्शक अपने मन को पसंद आने वाली,अपने भावों को सहलाने वाली प्रस्तुतियाँ देखने जाता है।  उसे जो भाये वही उसका है। वही उसके अंतर में उतरेगा, वही उसकी स्मृतियों में बसेगा।  दर्शक बाकायदा उसके लिए पैसा देता है, समय देता है,दिमाग़ देता है।
लेकिन दूसरी तरफ इन सृजन क्षेत्रों में भी कुछ जुनूनी,व्यावसायिक,स्वार्थी प्रवृत्तियों के लोग अपने को दर्शक के दिल-दिमाग पर येन-केन-प्रकारेण "थोपने"की कोशिश में लगे रहते हैं।  वे अपना घनघोर विज्ञापन करें, वहां तक तो ठीक, लेकिन वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर,भ्रम फैला कर माहौल अपने पक्ष में करने में भी नहीं चूकते। यहाँ तक कि भ्रामक अतिशयोक्ति-पूर्ण जानकारी देना,अपने प्रतिस्पर्धियों को जबरन नीचा दिखाना,तथा अपना बाजार बनाने के लिए दूसरों का रास्ता रोकना तक उनकी इस मुहिम में शामिल होता है।
मनोरंजन के क्षेत्र सिनेमा को ही ले लीजिये। यहाँ जितना स्याह-सफ़ेद है, शायद ही किसी और क्षेत्र में हो।
आज युवा हो रही पीढ़ियों के सामने पिछले साठ साल का जो इतिहास ढोल बजा-बजा कर प्रस्तुत किया जा रहा है,उसका सार यही है कि सवा सौ करोड़ लोगों के देश में "प्रतिभा"केवल चंद गिने-चुने परिवारों में ही रही है। अपने आप को शिखर पर दिखाने के जुनून में कई ऐसे महारथी हैं जो करोड़ों कमाते दिखाई दे रहे हैं पर असलियत ये है कि वे आज भी अपना बाजार बनाये रखने के लिए अपने बाप-दादा की मिल्कियत से ही खर्च कर रहे हैं।                  

4 comments:

  1. Very good post..
    Welcome to my blog

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार को '
    भोले-शंकर आओ-आओ"; चर्चा मंच 1892
    पर भी है ।

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  3. Sanju, aamantran ke liye shukriya.Tumhari khoobsurat panktiyaan padh lee hain maine,Vazandaar!

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  4. Ravikar,aapka aabhaar!Charcha-manch-1892 ke liye!

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