Saturday, February 28, 2015

क्या केलिफोर्निया के मेरे मित्र सहयोग करेंगे?

मेरी एक कहानी पिछले कुछ दिनों से अधूरी है। कहानी का एक पात्र बड़ी मुश्किल और जतन से एक छोटी सी डिबिया में अपने साथ एक तितली वहां [केलिफोर्निया में ] लेकर गया था।  अपनी स्कूली पढ़ाई जापान से पूरी करके केलिफोर्निया गए इस बच्चे को न जाने क्यों, मन में ये विश्वास था कि इस तितली को आज़ाद करते ही यह उड़ कर किसी लड़की के बालों पर बैठेगी और सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि स्वप्न में उस लड़की की झलक उसे दिखाएगी भी।
लड़के ने सोच रखा था कि यदि सचमुच ऐसा हुआ, तो वह अपने सपने के आधार पर ही उस काल्पनिक लड़की का एक चित्र बनाएगा, और उस चित्र के आधार पर लड़की को खोजने का भरसक प्रयास भी करेगा।
लड़के को न जाने किस बात के आधार पर ये यकीन भी था, कि तितली लड़की की झलक उसे दिखाने के तुरंत बाद मर जाएगी।
डेट्रॉइट एयरपोर्ट के लाउंज में नाश्ता करते हुए एक बुजुर्ग महिला को मेज़ पर एक तितली मरी हुई पड़ी दिखी है। वह रेस्त्रां मालिक से वहां सफाई न होने की शिकायत करने काउंटर पर जा चुकी है।
उधर केलिफोर्निया के एक बोर्डिंग स्कूल के वार्डन की रिपोर्ट संस्थान के डॉक्टर के पास पहुंची है कि उनके एक छात्र को कुछ दिन से नींद न आने की शिकायत हो गयी है।
भारत के एक स्वप्न-वैज्ञानिक का दावा है कि सपने कभी-कभी एक व्यक्ति की आँख से उड़कर किसी दूसरे की आँखों में भी चले जाते हैं, और इस तरह वे मानस बदल लेते हैं। इस बात पर प्रकाश डाला जायेगा कि  ऐसा कब होता है और क्यों होता है।
अभी तो आपसे केवल इतनी गुज़ारिश है कि यदि आपको कोई ऐसा सपना आया हो, या आपने किसी से ऐसा सपना आने के बाबत सुना हो, तो कृपया अवश्य सूचना दें !स्वप्न-वैज्ञानिक का अनुमान है कि यदि किसी और का सपना उड़ कर आपकी आँखों में आया है तो सम्भावना है कि लड़की आपको सीढ़ियां उतरते हुए या फिर किसी पक्षी को हाथ में लिए हुए दिख सकती है।
             

Friday, February 27, 2015

आप किस तरफ हैं?

वैसे तो दुनिया गोल है, हर कोई हर तरफ हो सकता है, लेकिन फ़िलहाल मैं बात कर रहा हूँ दोस्ती की। सबके असंख्य दोस्त होते हैं। किसके कितने दोस्त हों, कैसे दोस्त हों, ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि वह स्वयं कैसा है।
मुझे लगता है कि दोस्तों में भी एक बेहद खास किस्म के दोस्त होते हैं, जिन्हें आप अपने आप को दुरुस्त रखने का जरिया मान सकते हैं। अर्थात ये दोस्त आपको अपने आप को देखने-आंकने का नजरिया देते हैं।ये आपके गुरु दोस्त होते हैं। इनसे आप सीखते हैं। इनसे आपका रिश्ता एक ऐसे छिपे सदभाव का होता है कि इन्हें पता भी नहीं होता, और आप इनके हो जाते हैं।
अब मैं मुद्दे पर आता हूँ। कुछ लोग मानते हैं कि ऐसे दोस्त हमेशा उम्र और अनुभव में आपसे बड़े होने चाहिए, क्योंकि आप इनसे सीखते हैं, आप इनसे प्राप्त करते हैं। लेकिन वहीँ कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि ये दोस्त आपसे छोटे हों तो बेहतर, क्योंकि इनके रूप में आप अपना जीवन दोबारा जीते हैं। इनकी उपलब्धियों को देख कर आपको ऐसा लगता है कि आपको वह सब अब मिल रहा है जो पहले नहीं मिला, या कि वह आनंद फिर आ रहा है जो कभी पहले आपने लिया। इन्हें छूकर आप अपने गुज़रे दिन फिर छूते हैं।
तो अब आप बताइये कि आप किस तरफ हैं? अर्थात आपका ये आदर्श दोस्त आपसे बड़ा है या आपसे बहुत छोटा? बराबर के दोस्त अक्सर 'बराबर' के ही होते हैं, इसलिए फ़िलहाल हम उनकी बात नहीं करते।                  

Friday, February 20, 2015

साहित्यकारों के फ्लैप मैटर

एक गाँव में कहीं से घूमता हुआ एक फ़क़ीर आ पहुंचा। 'पड़ा रहेगा', 'किसी का क्या बिगड़ेगा', 'मांग-तांग कर पेट भर लेगा', सो किसी ने कुछ न कहा।
दो चार दिन बाद किसी मुसाफिर की निगाह पड़ी तो उसने देखा कि जिस गली में फ़क़ीर पड़ा रहता है, वो और गलियों से कुछ ज़्यादा साफ-सुथरी लग रही है। ऐसा लगा जैसे वहां रोज़ झाड़ू लगती हो।
कुछ दिन बाद उस गली के पेड़-पौधे कुछ ज़्यादा हरे-भरे नज़र आने लगे।  ऐसा लगता था मानो कोई पेड़ों की कांट -छांट कर उनमें खाद-पानी डाल जाता है। परिंदे भी वहां ज़्यादा चहचहाते,मवेशी वहां आराम करते, बच्चे वहीँ आकर खेलते।
लेकिन बुज़ुर्ग फ़क़ीर जल्दी ही एकदिन चल बसा।
अब लोगों का ध्यान इस बात पर गया, कि अरे, ये आखिर था कौन? कहाँ से आया था? क्या करता था?
लोगों ने इसकी खोज-खबर ली,और एक बोर्ड पर फ़क़ीर का नाम-गाँव-परिचय लिख कर यादगार के तौर पर गली में लगा दिया।
साथ ही गाँव-वालों ने तय किया कि सब लोग अपनी-अपनी गली की वैसे ही देख भाल करेंगे जैसे फ़क़ीर अपनी गली की किया करता था।
चंद दिनों में हर गली के नुक्कड़ पर चमचमाते बोर्ड लग गए जिन पर उस गली के मुखिया का रंगीन फोटो, नाम, पता, परिचय, प्रशस्ति आदि जगमगा रहा था।               

Wednesday, February 18, 2015

आशा की पराकाष्ठा

आशा तो छोटी सी भी हो, उम्मीदभरी होती है। और बड़ी आशा का तो कहना ही क्या ?
एक बार एक शिक्षक ने क्लास में पढ़ाते हुए अपने विद्यार्थियों से पूछा-"आशा का सबसे बड़ा उदाहरण क्या है?"
एक छात्र ने कहा-"सर, दुनिया में कैसे भी व्यक्ति का निधन हो जाय, यही कहा जाता है कि  वह स्वर्गवासी हो गया, अर्थात सबको यही आशा होती है कि  हर मरने वाला स्वर्ग ही जायेगा, जबकि दुनिया में लगभग अस्सी प्रतिशत लोगों के कार्य अपने जीवन में ऐसे नहीं होते कि  उन्हें स्वर्ग में स्थान मिल सके।"
शिक्षक ने कहा-"ठीक है, ठीक है, पर कोई ऐसा उदाहरण दो जिससे तुम्हारे मन की आशा का पता चलता हो, जिसमें तुम्हारे ह्रदय का उल्लास छलकता हो, जिसकी कल्पना-मात्र ही तुम्हें बाग-बाग कर डाले।"
एक और छात्र ने कहा-"सर,आपकी क्लास ख़त्म होने में केवल एक मिनट शेष है।"
पूरी कक्षा विद्यार्थियों की उल्लास भरी किलकारियों से गूँज उठी।      
  

Sunday, February 15, 2015

कलाक्षेत्र में ज़ुनून

कला और मनोरंजन का क्षेत्र ऐसा है कि वहां हर दर्शक अपने मन को पसंद आने वाली,अपने भावों को सहलाने वाली प्रस्तुतियाँ देखने जाता है।  उसे जो भाये वही उसका है। वही उसके अंतर में उतरेगा, वही उसकी स्मृतियों में बसेगा।  दर्शक बाकायदा उसके लिए पैसा देता है, समय देता है,दिमाग़ देता है।
लेकिन दूसरी तरफ इन सृजन क्षेत्रों में भी कुछ जुनूनी,व्यावसायिक,स्वार्थी प्रवृत्तियों के लोग अपने को दर्शक के दिल-दिमाग पर येन-केन-प्रकारेण "थोपने"की कोशिश में लगे रहते हैं।  वे अपना घनघोर विज्ञापन करें, वहां तक तो ठीक, लेकिन वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर,भ्रम फैला कर माहौल अपने पक्ष में करने में भी नहीं चूकते। यहाँ तक कि भ्रामक अतिशयोक्ति-पूर्ण जानकारी देना,अपने प्रतिस्पर्धियों को जबरन नीचा दिखाना,तथा अपना बाजार बनाने के लिए दूसरों का रास्ता रोकना तक उनकी इस मुहिम में शामिल होता है।
मनोरंजन के क्षेत्र सिनेमा को ही ले लीजिये। यहाँ जितना स्याह-सफ़ेद है, शायद ही किसी और क्षेत्र में हो।
आज युवा हो रही पीढ़ियों के सामने पिछले साठ साल का जो इतिहास ढोल बजा-बजा कर प्रस्तुत किया जा रहा है,उसका सार यही है कि सवा सौ करोड़ लोगों के देश में "प्रतिभा"केवल चंद गिने-चुने परिवारों में ही रही है। अपने आप को शिखर पर दिखाने के जुनून में कई ऐसे महारथी हैं जो करोड़ों कमाते दिखाई दे रहे हैं पर असलियत ये है कि वे आज भी अपना बाजार बनाये रखने के लिए अपने बाप-दादा की मिल्कियत से ही खर्च कर रहे हैं।                  

Friday, February 13, 2015

महिलाओं का सम्मान

महिलाओं का सम्मान दो तरह से होता है।
एक,जब पुरुष कहीं भी हो, उसके साथ उसकी वामा भी हो।  वह श्रृंगार से विभूषित हो। पुरुष से कहीं महंगे वस्त्र पहने हुए हो। गहने-आभूषणों से सज्जित हो। जब पुरुष कुछ कहे तो वह मुस्काये, पुरुष कुछ सोचे तो वह उकताए। पुरुष जो कमाए, वह उसके बटुए में आये, पुरुष जो खर्चे, वह उसकी अँगुलियों से गिना जाकर जाये।पुरुष के किसी भी निर्णय पर वह आँखें झुका ले, उसके किसी भी निर्णय पर पुरुष आँखें तरेरे।
दूसरा सम्मान वह होता है, जहाँ पुरुष हो न हो, वह हो। वह जो कहे पुरुष सुनें। वह जो सलाह दे,पुरुष उसे मानें। दोनों परस्पर परामर्श करें या न करें, महिला के निर्णय को पुरुष क्रियान्वित करने के लिए प्रयासरत हो।
भारत की राजधानी के पिछले दिनों हुए चुनावों में "महिला सम्मान" भी एक मुद्दा था।
ये चुनाव कई अर्थों में विलक्षण थे। इसमें लोकतंत्र ने कई चमत्कार किये।  सोनियाजी की पार्टी खाता नहीं खोल पाई। शीलाजी की किसी ने नहीं सुनी। सुषमाजी की बात को तवज्जो नहीं दी गयी,उन्हें बाहर भेज दिया गया । किरणजी को वोट नहीं दिए गए। कुछ वामाओं को टिकट, तो कुछ को मंत्री-पद नहीं दिए गए।
दिल्ली में सैंकड़ों सुल्तानों के बाद एक रज़िया होती है
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है                    

Thursday, February 5, 2015

सुविधा की लत

अपनी खिड़की पर खड़े होकर पेड़ों की फुनगियों,खुले अहातों, आंगनों में चहचहाती चिड़ियों को देखिये।  क्या इन्हें ज़रा सा भी इस बात का अहसास होता है कि अगले पल ये क्या करेंगी, कहाँ बैठेंगी, कहाँ उड़ जाएँगी, किससे  मिलेंगी , किससे बिछड़ेंगी,क्या खा लेंगी, कौन से पानी के बर्तन पर बैठ जाएँगी, बैठ कर भी पानी पियेंगी या बिना पिये ही उड़ जाएँगी, कौन सी आहट इन्हें डरा देगी,कौन सी आहट इन्हें आकर्षित करेगी। पानी के बुलबुले सी इनकी ज़िंदगी के ठहराव पर सोचिये।
क्या आपको नहीं लगता कि धैर्य,सहिष्णुता,आत्म विश्वास के मामले में हमारी नई नस्लें भी इसी तरह व्यवहार करने की आदी होती जा रही हैं?
शायद इसका कारण यह हो कि हम आभासी,क्षणिक,चलायमान जीवन के अभ्यस्त होते जा रहे हैं। गहराई, स्थायित्व,प्रतीक्षा,धैर्य जैसी चीज़ें हमारे जीवन से लुप्त होती जा रही हैं।
 सोचिये,पति-पत्नी ऊपरी मंज़िल पर रहते हैं और बाजार जा रहे हैं,पति तैयार होकर नीचे बाहर आ गया है, पत्नी को ताला लगा कर नीचे आना है,नीचे आने में लगभग एक मिनट का समय लगता है, पत्नी अब तक नीचे नहीं आई है, लगभग ढाई मिनट का समय हो गया है, तो यकीन जानिए, उसके पास मोबाइल पर फोन आ जायेगा, "अरे भई क्या हुआ?"
पति का धैर्य यह सोच पाने जितना न होगा कि हो सकता है, उसे भीतर से कुछ लेना याद आ गया हो, रस्ते में कोई परिचित मिल गया हो, लघुशंका की हाज़त हो गयी हो, प्यास ही लग आई हो!
      

Sunday, February 1, 2015

सफल लोगों का शहर

एक शहर था।  उसे सब लोग सफल लोगों का शहर कहते थे।  वैसे नाम तो उसका कुछ और था, किन्तु वह अपने नाम से ज़्यादा अपनी फितरत से पहचाना जाता था।  उसे सफल लोगों का शहर कहने के पीछे कोई बहुत गूढ़ या रहस्यमय कारण नहीं था, बल्कि वह तो केवल इसीलिए सफल लोगों का शहर कहलाता था कि उसमें रहने वाले सभी लोग अपने-अपने कामों में सफल थे। वे जो कुछ कर रहे थे, वह हो रहा था।
देखा जाय तो यह कोई बड़ी बात नहीं थी। यदि कोई कुछ करे तो वह होना ही चाहिए।लेकिन अमूमन ऐसा होता नहीं है। क्योंकि लोगों की इच्छाएं और कार्य प्रायः एक दूसरे के विलोमानुपाती होते हैं। "यदि यह होगा तो वह नहीं हो सकेगा","यदि यह नहीं हो पा रहा तो उसका होना स्वाभाविक है",आमतौर पर ऐसा होता है।  चीज़ें इसी तरह आकार लेती हैं, और इसीलिये सब नहीं हो पाता।  यदि आप अमीर बन रहे हैं, तो कोई दूसरा गरीब हो रहा है। आप बीमार हैं तो डाक्टर पनप रहा है।कोई हार गया तो आप जीत गए। आप भूखे मर रहे हैं तो कोई और जमाखोरी का लुत्फ़ ले रहा है।  तात्पर्य ये, कि सबका अच्छा नहीं हो पाता।
लेकिन जिस शहर की बात हम कर रहे हैं, वहां वह सब हो रहा था, जो-जो वहां के लोग करना चाहते थे।  इसी से वह सफल लोगों का शहर कहलाता था।
दरअसल, वह अवसरवादी लोगों का शहर था। वहां के लोग वही करते थे जो हो जाये। मसलन यदि वहां कोई "दहाड़ने" की कोचिंग देता था तो उसमें केवल शेरों को ही प्रवेश दिया जाता था।वहां लोग बंदरों को छलांग लगाना सिखाते थे,बतखों को तैरना। यदि कोई आँसू बहाना सिखा रहा है तो वह उन्हीं लोगों को सिखाएगा, जो दुखी हों। इस तरह काम न होने का अंदेशा नहीं होता था।
यदि लोग ठान लेते कि वहां कोई सरकार न हो, तो वह अपने आप को वोट दे देते थे।
                    

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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