दो मित्र थे। गाँव से शहर पढ़ने के लिए आये थे। कुछ तो मितव्ययता का ख्याल, कुछ अध्ययन के लिए आवश्यक एकांत का, और कुछ मालिक मकान से किसी परिचित की दूर की रिश्तेदारी,इन सभी बातों के कारण उन्हें एक बंद गली का आखिरी मकान ही पसंद आया और उन्होंने इसे किराये पर ले लिया।
दिन पंछी की तरह उड़ते हुए बीतने लगे।
संयोग की बात, पढ़ाई पूरी होते ही दोनों की नौकरी उसी शहर में लगी। उधर मकान का मालिक किसी और जगह जाने की योजना बना रहा था, अतःसस्ते में सौदा हो गया और दोनों ने मकान खरीद लिया।
कुछ ही समय में दोनों की पत्नियाँ भी आ गयीं, और घर बस गया।
अब धीरे-धीरे मकान की पिछली दीवार की खिड़कियाँ भी खुलने लगी हैं, चार दीवारी में लोगों ने कुछ तोड़-फोड़ भी देखी। अब उसे लोग बंद गली का आखिरी मकान नहीं कहते।
ठीक भी है, दुनिया की कोई गली हमेशा के लिए बंद नहीं है। "आख़िरी" कहीं भी,कभी भी,आख़िरी नहीं है।
दिन पंछी की तरह उड़ते हुए बीतने लगे।
संयोग की बात, पढ़ाई पूरी होते ही दोनों की नौकरी उसी शहर में लगी। उधर मकान का मालिक किसी और जगह जाने की योजना बना रहा था, अतःसस्ते में सौदा हो गया और दोनों ने मकान खरीद लिया।
कुछ ही समय में दोनों की पत्नियाँ भी आ गयीं, और घर बस गया।
अब धीरे-धीरे मकान की पिछली दीवार की खिड़कियाँ भी खुलने लगी हैं, चार दीवारी में लोगों ने कुछ तोड़-फोड़ भी देखी। अब उसे लोग बंद गली का आखिरी मकान नहीं कहते।
ठीक भी है, दुनिया की कोई गली हमेशा के लिए बंद नहीं है। "आख़िरी" कहीं भी,कभी भी,आख़िरी नहीं है।
Dhanyawad.
ReplyDeleteसच है नाही कोई गली का मकान आख़िरी होता है ना ही वहां रहने वाले लोगों की मित्रता बशर्ते उनके स्नेह में सच्चाई हो |
ReplyDeleteTheek kaha aapne, aabhaar!
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