Tuesday, August 10, 2010

लक्ष्य के समीप

मैं कल जयपुर पहुँच जाऊंगा। राही पत्रिका के लिए लोगों ने रूचि दिखानी शुरू कर दी है। साहित्य की आज जो स्थिति है, वह कोई विचित्र बात नहीं है। लगभग हर काल में ही ऐसा रहा है कि बहुत कम लोग इसके ग्रीन रूम से जुड़ते हैं। बाकी तो मंचाकान्क्शी हैं। या फिर सामने बैठे दर्शक। मुझे कुछ ग्रीन-रूम कार्यकर्ताओं की ही तलाश है। १५ अगस्त के बाद हम यह कवायद शुरू कर देंगे। हमारे पास कुछ ऐसे लोग भी आये हैं जो अभी अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास कर रहे हैं। इन के लिए हम आवासीय और गैर- आवासीय रोज़गार कार्यक्रम भी शुरू कर रहे हैं। इनकी देखभाल और मदद के लिए कुछ सेवाभावी युवा भी हमारी ज़रुरत हैं। मेरा मानना है कि इस मानसिकता के लोग हमें बहुत कम और दूर-दूर फैले मिलते हैं। वे हम पर भरोसा कर के हमारे पास चले आयें, इसमें भी वक़्त लगेगा। जल्दी में हम भी नहीं हैं, हम इंतज़ार करेंगे। बहरहाल हमारे पास एक अजनबियों का मासूम व इमानदार परिवार गढ़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना है। वरना मैं,मेरा परिवार, मेरे बच्चे, मेरी जाति, मेरी संपत्ति जैसी अवधारणाएं तो स्वार्थी गुटों के रूप में समाज को बाँट ही रही हैं। यदि आपको लगता है कि हम सब दुनिया में मेहमान की तरह आये हैं, और हंसी-खुशी अपना वक़्त बिता कर जाएँ, तो निःसंकोच हमसे संपर्क कीजिये।

5 comments:

  1. बहुत ही उत्तम विचार ,सार्थक प्रस्तुती ...

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  2. humko bhi aapse juad kar aacha laga!!

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  3. mene ek blog banaya h jisme m apni likhi hue kuch rachnaye or vichar deti hu plz aap use pade or mujhe kuch jaruri sujhav de
    link h
    www.deepti09sharma.blogspot.com

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  4. सर, मेहमान तो उस चाँद की तरह होता है जो कुछ दिन घर में उजाला कर चला जाता है, और मुझे ऐसे कम ही मेहमान मिले जो मेजबान की परेशानियों को समझ कर उसे बांटने का काम करे| इसलिए अगर हम मेजबान की तरह काम करें तो ज्यादा अच्छा नहीं होगा?

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  5. आज आपसे बातें करना जितना अच्छा लगा था, इस पोस्ट को पढ़कर उससे भी अधिक अच्छा लगा। आपने नि:संदेह व्यापक हृदय पाया है।

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

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