कुछ लोग "साहित्य अकादमी" द्वारा दिए गए सम्मानों को वर्षों बाद वापस लौटा रहे हैं। आइये देखें, कि वे जाने-अनजाने अपनी मासूमियत में क्या कह रहे हैं? अर्थात इसके क्या निहितार्थ हैं?
-वे कह रहे हैं कि उन्हें पुरस्कार/सम्मान उनकी रचनाओं पर नहीं मिला, बल्कि इसलिए मिला है, क्योंकि उस समय की सरकार और नेता अच्छा काम कर रहे थे।
-साहित्य के पुरस्कार साहित्य के विशेषज्ञ, समालोचक तथा वरिष्ठ साहित्यकर्मी नहीं तय करते बल्कि सत्ता में बैठे हुए नेता तय करते हैं।
-अब वे अपमानित महसूस कर रहे हैं क्योंकि 'अब सत्ता में उनका कोई नहीं' है।
"लौटा रहे हैं 'मान' वे, सत्ता को कोस कर
लगता है उनके मान में, सत्ता का हाथ था"
तो अब वे सरकार के नयनों के तारे नहीं रहे।
-वे कह रहे हैं कि उन्हें पुरस्कार/सम्मान उनकी रचनाओं पर नहीं मिला, बल्कि इसलिए मिला है, क्योंकि उस समय की सरकार और नेता अच्छा काम कर रहे थे।
-साहित्य के पुरस्कार साहित्य के विशेषज्ञ, समालोचक तथा वरिष्ठ साहित्यकर्मी नहीं तय करते बल्कि सत्ता में बैठे हुए नेता तय करते हैं।
-अब वे अपमानित महसूस कर रहे हैं क्योंकि 'अब सत्ता में उनका कोई नहीं' है।
"लौटा रहे हैं 'मान' वे, सत्ता को कोस कर
लगता है उनके मान में, सत्ता का हाथ था"
तो अब वे सरकार के नयनों के तारे नहीं रहे।
कुछ इसलिए भी लौटा रहे हैं कि लोग-बाग जान जाए कि उन्हें भी पुरस्कार मिला था ~ फेसबुक से
ReplyDelete*माफ़ी
Dhanyawad...aapto sab jaante hain.
ReplyDeleteशुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in
ReplyDeleteDhanyawad
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